****मंत्र एक कृत्रिम निंद्रा*****
किसी व्यक्ति विषय या वस्तु पे लगातार एकटक देखने से,जोर की ध्वनि जैसे घंटा ,डमरू अथवा ढोल-नगाड़े इत्यादि की ध्वनि लगातार सुनने या पांचो इन्द्रियोँ में से किसी एक इन्द्रिय की वृत्ति अनुसार उसके गुण पे या किसी एक विषय पे लगातार सोचने से एक प्रकार की कृतिम निंद्रा उत्पन्न हो जाती है।इससे कारक स्वयं से सम्मोहित हो जाता है।मंत्रो को बार बार जपने से भी यही होता है।किसी प्रकार की चमकीली वस्तु ख़ास कर स्वर्ण या पीतल की वस्तु को लगातार देखने से भी सम्मोहन उत्पन्न हो जाता है।ये सम्मोहन पीतल के यन्त्र या देवताओ की मूर्ति द्वारा भी उत्पन्न हो जाता है।यंत्रो एवम् पीतल की मूर्तियो के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाने से ये यन्त्र एवं मूर्तियो की चमक और ज्यादा बड़ जाती है।और कारक एक प्रकार की कृत्रिम निंद्रा में चले जाता है जिससे बाहर निकलने के बाद उस अकस्मात् शांत निंद्रा के कारण ,कारक को स्वास्थ लाभ महसूस होता है।भारतीय तंत्रानुसार मूलाधार चक्र का आकार चौकोन एवं इसका रंग चमकते स्वर्ण की भाति माना गया है इस स्थान पे ध्यान लगाने से व्यक्ति निरोग होता है।इस स्थान के मूल देवता गणेशजी महाराज है और यही स्थान काया का मूलस्थान भी है।सिद्ध साधक पहले अपने सामने मूर्ति या यन्त्र लगा के साधना करते है एवं जब वे इस ध्यान को सिद्ध कर लेते है तब उन्हें किसी प्रकार के यन्त्र या मूर्ति की आवश्यकता नहीं होती,तब वे आँखे बंद कर ,बंद आँखों से उस यंत्र,मूर्ति या तेज सुनहरे प्रकाश की कल्पना कर ,गहरे ध्यान में प्रवेश कर जाते है।आज कल बाजार में कागज़ के यन्त्र प्राप्त होते है जो की स्वर्णिम ध्यान में सहयोग प्रदान नहीं करते है।
किन्तु इस विधि को जानने के बाद भी एक बात स्मरण रखने की है की ध्यान हो,योग हो या फिर मंत्र जाप ये सब हठयोग ही है इसमें आप सहज नहीं रहते सब कुछ नकली एवं बनावटी ही होता है।अपने दिमाग को झूठे संकेतो को प्रदान करना ही इनका उद्देश्य मात्र है।जो मृगतृष्णा मात्र है।जैसे की ये सामान्य से घटना होगी की यदि आप आधा किलोमीटर दौड़ लगायेगे तो आपकी श्वास तेज हो जायेगी,ये एक प्राकृतिक घटना का असर होगा,जो सामान्य से बात है आप दौड़ेंगे तो श्वास बढ़ेगी ही किन्तु इसके विपरीत आप एक स्थान में बैठ कर भी अपनी श्वास को बड़ा सकते है ये सामान्य नहीं है यह हठ ही होगा शरिर के साथ।प्रकृति ने आपके अंदर स्वचालित प्रतिक्रया करने वाले यन्त्र लगा रखे है जो आवश्यकतानुसार आपमें परिवर्तन लाते रहते है एवं कमी होने पे उसकी क्षति पूर्ति करते रहते है।मंत्रो के बार बार एवं लगातार जाप करने से(विशुद्धचक्र) ,लगातार खुशबु के संपर्क में रहने से(मूलाधार चक्र)सक्रिय हो जाता है और कारक के साथ कोई चमत्कार नहीं होता वह स्वयं एक कृत्रिम निंद्रा की शरण ले लेता है और बार बार इस क्रिया को करने के लिए बंध जाता है।ज्ञात हो की हिन्दू धर्मानुसार तंत्र-मंत्र-यन्त्र को बहुत ही निम्नकोटि का स्थान प्राप्त है ध्यान एक उच्च अवस्था है ।किन्तु ध्यान भी एक प्रकार का हट ही है। तंत्रोक्त ध्यान एवं सामान्य ध्यानावस्था में बहुत भेद है जैसे तंत्रोक्त ध्यान इच्छानुसार किसी एक स्थान ,सुगंध,मंत्र इत्यादि में ध्यान करना है वही गहरे सामान्यध्यान में उतरने के लिए आपको अपनी सभी क्रियाओ को छोड़ कर एक स्थान में बैठना मात्र है,फिर ना कुछ सोचना है फिर ना कुछ देखना है ना कुछ बोलना है।किसी भी रंग का या चमकती काली पिली हरी रोशनी के विषय में नहीं सोचना है जैसे ही आप इन विषयो के बारे में सोचते है वह ध्यान नहीं होता ,वो तंत्रोक्त कर्म या इच्छापुरक अनुष्ठान बन जाता है,मात्र साक्षी रहना है स्वयं का ,फिर जो होता है हो जाने दे,ध्यान जहा जाता है जाने दे इस अवस्था में बहुत सी चमकती रोशनी दिखेगी उसे दिखने दे वो स्वयं लुप्त हो जायेगी,बहुत से खुशबु आएगी,बहुत सी आवाजे आएगी आने दे वे सब आपको धोखा ही देगी इन सब क्रियाओ को होने दे ,बाधा ना डाले।इस प्रकार धीरे-धीरे कारक अपने गंतव्य तक पहुच ही जाता है।
बचपन में राखी के दिन मैंने इस कृत्रिम अवस्था को पहली बार समझा जिसने भविष्य में इस विषय पे शोध करने के लिए प्रेरित किया।राखी के दिन जब मेरी बहन मुझे राखी बाँधने आई तब उन्होंने एक लाल रंग की बिंदी लगाईं थी जिसमे लाल रंग के अलावा सुनहरे रंग का बाहरी गोल वृत भी था।जब वे तिलक के समय मेरी आरती उतार रही थी तब एक पल के लिए मेरी दृष्टि उस बिंदी पे पड़ी जो दीपक के प्रकाश से सूरज के समान चमक रही थी,इस अवस्था में मैंने अपने आपको कुछ समय के लिए,शायद 8 या 10 सेकेण्ड के लिए एक अलग ही अनुभूतियों में पाया।फिर जैसे ही बहन ने मुझे आवाज लगाईं तो फिर पुनः मैंने अपने आपको धरातल पे पाया।किन्तु इस घटना ने मुझे सोचने पे विवष किया की उन पलो में मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ।जिसका उत्तर आज समझ आता है की वह स्वसम्मोहित एवम् कृत्रिम अवस्था थी।हमारा मस्तिष्क अज्ञात एवं अचानक घटी घटनाओ से स्तंभित(हैंग) हो जाता है ऐसा मैंने पाया।
अचानक आई खुशबु,आवाज या दृश्य इत्यादि से हमारा मस्तिष्क स्तम्भित (हैंग)हो जाता है जैसे मोबाइल हैंग हो जाता है कुछ समय के लिए।सत्मभन से निकले के दौरान बिता हुआ समय हमारे लिए चमत्कार सा महसूस करवाता है बल्कि ऐसा कुछ नहीं होता।
मंत्र इच्छा पूरी करने का एक स्टीक माध्यम हो सकता है ईश्वर तक पहुचने का मार्ग हो सकता है किन्तु मंत्र मंजिल नहीं होता।हमारा आखरी पड़ाव परमात्मा का घर है जहा शब्द नहीं पहुचते ।शब्द तो मात्र कंठ(विशुद्ध चक्र)तक ही होते है इसके ऊपर(सहस्त्रार)तक तो मात्र गुंजन ही पहुचती है जो की गुरु का स्थान है परमात्मा तो यहाँ से बहुत दूर होता है जिसका मार्ग गुरु ही बताते है।
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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