शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

"शिशु बलि"

"शिशु बलि"
!! चलो बटुक भैरव साधना करे !! 
एक बच्चे की बली दे !! सभी स्त्री पुरुष सभी के लिये.....
आदेश !!
शब्द साँचा,पिण्ड काँचा।फुरो मंत्र ईश्वरो वाँचा!!
नमस्कार मित्रों (ऊं नम: शिवाय नमो हरी)
मित्रों ये मेरा व्यक्तिगत विचार है इसे मानना है या नही ये आप पर निर्भर करता है !!
“बटुक” मतलब बच्चा,”बच्चा “ मतलब मन, “मन” मतलब विचार,”विचार” मतलब भावनाओं का भवंडर !!
ये बच्चा बचपन से जब से हम होश समहलते है उसके पहले भी हमे परेशान करता रहा है!! डराता रहा है !! ईसके पसंद का कार्य किया तो ठीक नही तो ये नाराज होजाता है !! ये हमेशा बोर होता रहाता है !इसे हमेशा मनोरंजन की आवश्यक्ता होती है बहलाने की आवश्यक्ता होती है! ये कही एक जगह नही टिकता ! पल पल ईसकी सोच मे परिवर्तन होते रहते है! जब आप किसी भी प्रकार की साधना या मन को एकाग्र करने का प्रयास करते है! तो ये आपको विपरित दिशा की और ले जाता है !यदि आपने अधिक प्रयास किया तो ये डराने लगता है ! आपके अतित के “भयों” को ये उजागर करने लगता है आपके द्वारा किये औरो पर अन्याय,क्षल-कपट,चोरी,दोषारोपण,नाजायज संबंधो या अन्य पाप कर्मों को याद दिला कर आपको ये जताने का प्रयास करता है की आप पापी है! और आप ये सब नही कर सकते !! इसी कारण वश हमारे ऋषी-मुनियों ने पहले पाप की निवृ्त्ति को विषेश महत्व दिया है !!

किन्तु पाप कर्म भी भावनाऔं का माया जाल है क्योकी पाप आप नही करते आप से यही करवाता रहता है क्योकी ईसे हथियार भी हमने ही दिया है संस्कारो से ,इसे पहले ही बताया जाता है बचपन से की क्या? पाप है और क्या पुन्य? इसी कारण वश दोनो का भेद यह समझता है ! यदी कीसि को ये पाप-पुन्य का ग्यान बचपन से ना दिया जाये तो वह सही और गलत मे भेद नही कर पायेगा !!वो सिर्फ़ आपके अनुसार ही चलेगा! किसि भी विधि से ईस बटुक को समझा दिया जाये तो यह हमारे बस मे होगा!! किन्तु वो भि नकली हि होगा !!इस बटुक की एक और विषेषता भी है की इसे याद रखने की योग्यता प्राप्त है !! और ये आप को वो ही जवाब देता है जो आपने इसे प्रदान किये है ! कम से कम 43 दिन तक यदि ईस बटुक को एक ही निर्देश दिये जाये तो ये उन निर्देशो का पालन करने लगता है !!वैदिक कुछ ऋषी गण ईस बटुक को प्रताडीत भी करते है अपने निर्देश प्रदान करने के लिये,जिसे हठ योग कहा जाता है जैसे; प्रकृ्ति के विरुद्ध प्रक्रिया करना,उपवास करना,श्वसन क्रीया को अपनी ईच्छा के अनुसार करना,जल नही देना,बतूक को जो भी वस्तु पसंद हो उसके विपरित आचार करना!! अघोर मे इस क्रिया के लिये मल-मुत्र का सेवन करना,स्मशान मे रहना,अकेले रहना,शव की भस्म का लेपन करना,चिता के उपर भोजन तैयार करना इत्यादि !! सारे ग्रंथो का सार इस बटुक के आशिर्वाद पे निर्भर करता है!!इस बटुक के पास अष्ट पाश से युक्त बाणों का संग्रह है काम,क्रोध,मोह, लोभ ईत्यादि..
किन्तु मैने पाया की इस बटुक से युद्ध करने की अपेक्षा इसका आशिष पाना उचित है !! वैसे भी बच्चों को प्रेम से ही समझाया जा सकता है !! इससे नित्य एक ही प्रकार का आदेश दे कर भी नियंत्रण में रखा जाता है !! और लगातार नियंत्रण बनाये रखना ही साधना कहलाती है !! साधना के टुट्ते ही ये फ़िर मद्मस्त हो जाता है !!इसे निश्चित आदेश देने के लिये सर्व प्रथम नाम बदलना होता है ताकी इसके पिछले नाम के साथ जुडे सब पापो का अंत हो सके !! क्योकी हमारे हर पाप पुन्य का लेखा-जोखा इसी नाम से होता है !! सारे संसार मे भी और चित्रगुप्त के दरबार मे भी !! ईसी कारण वश जो गुरु सच मे गुरुपद को पाने के योग्य है वो सर्व प्रथम नया नाम प्रदान करते है!! इस बटुक को साधने हेतु इस नये नाम को शस्त्र बना कर भविष्य की और जाने हेतु अग्रसर किया जाता है !! यदि योग्य गुरु नही मिले तो अपने गुरुदेव का चयन आप स्व्यं करे ! एक नया नाम आप स्वयं ईसि प्रदान करे ! तन्त्र मे ईसे ही “ईष्ट” का निर्धारण करना कहा जाता है!!ये कोई भि नाम हो सकता है किसि भी देवता का हो सकता है किसि भी मानव का हो सकता है !! किन्तु याद रखने वाली बात ये है की आप जो भी नाम रखेंगे उस के अनुरुप आपका स्वभाव हो जायेगा ! यदी देवि या किसि स्त्रि का नाम रखा तो आप मे स्त्री के गुण उत्पनन हो जायेगे,पुरुष का नाम रखा तो पुरुष के,एवं किन्नर का नाम रखा तो किन्नर के !
तो सर्व प्रथम एकांत मे बैठकर इस विषय मे चिंतन करे की आप कीसकी उपासना करना चाहते है किस्के समान बनना चाहते है!जब आप इस बटुक का नाम बदल कर दुसरा रख दे तो आपको दो कार्यों मे एक का चयन करना होगा 1.या तो वेद शास्त्रों मे से किसि देवि देवता का नाम चयन कर उनकी स्तुति-प्रार्थना नित्य करे !! जिससे इस बटुक की बली दि जा सके !! यहि तन्त्र की सही बली प्रथा है जिसे “बच्चे कि बली अर्पित करना” कहा गया है ! जिनहोने देवि का नाम चयन किया है वे देवी को और जिनहोने देव को चयन किया है वो देव को इस बटुक की बली प्रदान कर उस देव का नाम ग्रहण कर लेते है ! 2. आप स्वयं का एक नया चरित्र बना के प्रशिक्षण दे सकते है !! नाम भी खुद बनाये और उसके गुनो का चयन भी खुद ही करे !! इसी कारण वश आपने देखा होगा कुछ साधु कुछ भी बोलते रहते है ! श्री नाथ पंथ मे कर्णपिशाचनी की साधना ऎसी ही श्रेणी मे आती है !! किन्तु वो भी किसि दुसरे की हि सोच होगी आपकी अपनी व्यक्तिगत नही !! कुछ लोग देवताऔ कौ ईष्ट मानते है कुछ नेताऔ को,कुछ अभिनेताओ को ! एवं उनके जैसे बनने या दिखने का प्रयास करते है !! क्रमश:

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।

चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

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