शनिवार, 23 जुलाई 2016

क्या होता है अध्यात्म?

!! the secret codes !!
क्या होता है अध्यात्म?( व्यक्तिगत विचार्)
अध्य +आत्म =अध्याय आत्मा का
कहा से शुरू करे ??
मै कौन हूँ ।यही पहला अध्याय है आत्मा का!
मै कौन हु ?
पूछो अपने आप से
आपका नाम तो माँ बाप ने अपनि पहचान के लिए नाम रखा!
समाज के पहचान के लिए दिया है।
तो तुम कौन ????
पता तो करो
यही साधना है ।।
साधना ये शव्द बड़ा विचित्र है
साफ साफ़ कहा है साध ना
जिसे साधना मना है फिर भी प्रयास तो करना ही होगा
पुछो क्या जानना है साधना के विषय में ।।
किसकी साधाना।।।
किसको साधना है ?
खुद को या खुदा को?
वो जो खुद ही आ सकता है किसी के पुकारने से जो नहीं आता वही खुदा है।
जिसको भी साधना है पहले उसका नाम रखो माता बनके पिता बन के
जैसे
राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या अन्य कोई भी नाम।
बचपन में जब मुझे डर लगता था तो मै मेरे दोस्त का नाम लेता था
दीपक बचा ले,और मै भय मुक्त हो जाता था।
मन को स्थिर करने के लिए मन से दूर होना पडेगा।
शत्रु जैसा व्यवहार करना पडेगा। जैसे पिता के मना करने पर पुत्र पिता को शत्रु समझने लगता है।
किसी कर्म काण्ड की आवश्यकता नहीं है इसमें ।।
कर्म काण्ड मतलब देवताओं को प्रसन्न करने के अलग अलग उपाय।
अध्यात्म का कर्म काण्ड से कोई लेना देना नहीं है।
वो तो लक्ष्मी के पुजारियो का कार्य है।
रोज मन की एक इच्छा पूरी करो।
इससे संकल्प शक्ति का निर्माण होता है।
इसे ही "संकल्प साधना" कहते है।
मन को एक नाम दो।
राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या गुरुदेव कोई भी नाम।
और सब कुछ उस नाम को समर्पित कर दो।।
किन्तु दिमाग का क्षेत्र गुरु का है। और गुरु को ज्ञान महागुरु ही दे सकते है कोई सद्गुरु ही दे सकते है।।। पढ़ा तो जा सकता है किन्तु उसे समझाना गुरु का ही कार्य होता है।
तंत्र कहता है बच्चे की बलि दो शिशु की बलि दो
और तांत्रिक मानव शिशु पशु को बलि दे देते हैं जो की गलत है।। शास्त्रों में मन को ही पशु कहा गया है। इस पशु के ऊपर नियंत्रण करने वाला ही पशुपति नाथ कहलाता है। पहले किसी एक विषय का चुनाव करो अन्याथा सब भटक जायेगे।
तो पहले क्या? विषय होना चाहिये ।।शान्ख्या,ध्यान,आत्मा,पूजा, इत्यादि।।
तो प्रारम्भ करते है ध्यान से।
ध्यान?
ध नाम का यान।ध+यान=ध्यान
ध=धड़कन +यान
धडकनों का यान
ध्यान ?
धडकनों के यान का नियन्त्र।
इस यान की ऊर्जा क निर्माण श्वास एव भोजन से होता है
जीतनी श्वास  बढाओगे उतनी गति  इस यान की बड़ जायेगी।
और जितना घटा ओगे गति कम हो जायेगी।
किन्तु ध्यान मोक्ष का मार्ग है।
ध्यान के बिंदु का चयन करना होगा की
ध्यान लगाना कहाँ है
बाहर या भीतर।।।
किन्तु श्वासों को मात्र बढ़ाना या घटाना प्राणायाम नहीं होता।
प्राणायाम तो मात्र एक आयाम है
प्राणायाम से मंत्र सिद्धि नहीं मिलती।सिद्धि में सहायता मिलती ।।
एकाग्रता मिलती है।
जीतनी श्वासों की गति  बढाओगे उतने नीचे के चक्रो पे पहुचोगे ।
और जितना श्वासों को घटाने से ऊपर के चक्रो पर पहुचोगे।।
सबसे निचे मूलाधार चक्र उपस्थित होता है।
इस चक्र में श्वासों के गति की आवश्यकता होती है और श्वास के प्रहारों से काम क्षेत्र में स्पंदन होने लगता है।जिससे काम ऊर्जा का जन्म होता है
जो वशीकरण में काम आती है
ऊपर सहस्त्रार जहा श्वासों की आवश्यकता ही नहीं होती।वहा शान्ति है मौन है ।एकान्त है यही महादेव का वास है।।
बिना रुके माता के पहाड़ पे चढ़ जाने से भी श्वास बड जायेगी।।
एक जगह बैठे रहो कम हो जायेगी।।
ऊपर के चक्रो में धन नहीं है
ह्रदय चक्र तक ही धन धान्य है

थोड़ा बुद्धि को समय दो सोचने का
ह्रदय के ऊपर के चक्र पर माता पिता गुरु की भावनाए रहती है
ऊपर की साधनाए इश्वर तक पहुचाती है
और निचे के चक्रो की साधनाए इश्वर के विरुद्ध ले जाती है
एक बिंदु काला है जो नीचे है जिसे काली कहा जाता है। जो की महामाया है।
दूसरा सफ़ेद
ये कैलाश है ये महादेव है।। जिसकी उपासना सभी धर्म करते है।।
ऊपर से ऊर्जा का आहावाहन और नीचे की ऊर्जा का आहावाहन दोनों एक साथ करने से जब ये मध्य बिंदु पे मिलती है उस बिंदु को विष्णु कहते है। बालाजी कहते है।
वो तो खुद पे निर्भर करता है
आपको क्या चाहिये।आप कहा ध्यान लगाना चाहते है।
योगी  वो होता है जो 7 चक्रो को अपने नियंत्रण में  ले लेता है।।और अपनी इच्छा सइ सभी चक्रो पर भ्रमण करता है।
वैष्णव ह्रदय के चक्र पर जीवन बिता देता है ।शैव मूलाधार पे
और ब्राहमण सहस्त्रार पे जहा ब्रह्मा का राज है ।।कोई समपूर्ण नहीं होता ।।सिवाय योगी !!
अब तुम बताओगे की क्या इच्छा से साधना करना है ।।
हर चक्र की एक भावना होती है अनुभूति होती है ।जो भावना होगी वो चक्र सक्रिय हो जाता है।
गृहस्त को मूलाधार स्वाधिष्ठान और ज्यादा से ज्यादा मणिपुर पर ही ध्यान लगाना चाहिये ।
हर इच्छा का एक चक्र है
योगिक साधनाए या मंत्र पड़ने से ध्यान ऊपर के चक्रो की और प्रेषित होता है जिससे गृहस्त जीवन खराब हो जाता है।
किसी का भला कोई नहीं करता।
पहले खुद का ही कर लेगे तो सब का भला हो जाएगा।
निचे के चक्र भलाई नहीं करने देते।
जैसे ही वे जागते है सबसे पहले चरित्र चक्रानुसार हो जाता है
हृदय चक्र में माता पिता का स्थान है।
उनकी सेवा से या बड़ो की सेवा से वह चक्र सक्रिय हो जाता है।
भगवान को माता पिता समझ करा साधना करने से भी ये चक्र सक्रिय रहता है।
और विवाह के बाद यह चक्र स्थिर हो जाता है और मूलाधार सक्रिय हो जाता है।
इसी कारण वश बहु और सास ससुर की जीवन में मैत्री नहीं होती।दोनों ही दो विपरीत चाकरों की भावना है।
ह्रदय के ऊपर के चक्रो में इसी कारण वश ब्रहम चर्य मुख्य नियम है।
1 चक्र मूलाधार में काली
2 चक्र में दुर्गा इसी प्रकार अन्य चक्रो का नाम है।
तो कहा चलना है इस यान को
ऊपर या निचे
जिनकी शादी नहीं हुई है उनका यान ऊपर चला तो ????

इस संसार में अधिक भगत स्त्रियों  को वश में करने की साधना चाहते है जो की मूलाधार की साधना है। और ऊपर के चक्रो में ध्यान लगाया तो
धोखा हो जाएगा प्रेमिका के जगह माता का हाथ पकड़ा जाएगा।और यदि माता ने हाथ पकड़ा तो वो अपने बालक को कभी नहीं छोड़ती ।
क्या करे???
वो जिनकी शादी नहीं हुई है और वे ग्रृहस्त रह कर साधना करना चाहते है उन्हें मूलाधार पे ही निवास करना चाहिये।। और जो ऊपर के चक्रों की साधना कर ईश्वर तक पहुचाना चाहते है वे
गुरु गोरख की शरण में आना चाहिये ।
भेष बदलो।
भेष भगवान  की शरण में आओ।
भेष बदलो।
माता के समक्ष पुत्र बन जाओ।
पुत्र के सामने पिता।
पत्नी के सामने पति।
बाकी समय जय गोरख जय गोरख।
सब चक्रो को अपनी इच्छा से चलाओ।
कल्याण किस्से होगा
आपका?
नाम से?
धन से वैराग से?
तन से मन से?
अपने कल्याण का चयन करो.।
इन सभी चक्रो का नियंत्रण आज्ञा चक्र से होता है जिसकी उपस्थिति भृकुटियो के मध्य होती है। यही नियंत्रण करता है जिसे गनेश कहा जाता है। जिसकी ऊर्जा गनेश के सूंड की तरह चनचल होती है ।।यही विघ्नों का नाश करति है।।

आज्ञा चक्र
जिसका मूल मंत्र आप सब बोलते है रोज फ़ेस बुक पर पड़ते है लिखते है।
आज्ञा चक्र का मूल मंत्र है
आदेश शब्द
आदेश कहते ही आज्ञा चक्र जागृत हो जाता है।किन्तु इससे नियंत्रण करना गुरु गम्य है।। आसान नहीं है।।।
ज्ञान का क्षेत्र सहस्त्रार है।पढ़ने सुनने से ज्ञान बढ़ता है।
सिर्फ पड़ते रहना,जितना पढोगे उतना इश्वर से दुरी होगी
ज्ञान तो बचपन से हमारे साथ होता है समय के साथ हम भुल जाते है
आज्ञा चक्र की साधना
रोज 30 मिनट करना
रोज एक संकल्प लेना
और पूरा करना
जो काम सबसे बोर लगे उसे करना।
और आज व्हाट्स अप,फेस बुक,मोबाइल एवं टीवी बंद करके 30 मिनट बैठना ।इससे बड़ा बोर काम क्या हो सकता है।।
खाली घड़े को ही पुन:भरा जा सकता है।और भरा घड़ा कोई खाली नहीं करता क्योकि ज्ञान का अभिमान उस घड़े को खाली नहीं होने देता ।और सही गुरु वही है जो उस घड़े को फोड़ दे???
जितना पढोगे उतना ब्रह्म पैदा होगा
इसे ही ब्रह्म दोष कहते है
इसी कारण धरती में ब्रह्मा की पूजा नहीं होती
आज्ञा चक्र सिद्ध कर के रोज 7 तो चक्रो पे  सैर करो
गुरु का नाम
गुरु शब्द सहस्त्रार का शब्द है।
और सहस्त्रार में शांति है।
जितने संसारिक भाव होगा उतने नीचे चक्रो में प्राण रहता है।
जीतनी विरक्ति होगी उतना ऊपर का चक्र सक्रिय होता है।
भाव अभी तुम्हारी इच्छा से नहीं चल रहे इसी कारण तुम दुखी हो जाओगे
और जब खुद ही सभी भावो पे नियंत्रण कर लोगे।
तो शिव हो जाओगे।गोरख हो जाओगे।
एक विधि और है
रोज एक चक्र पे ध्यान देना
1 दिन मूलाधार पे
2 दिन स्वाधिष्ठान पे
7 दिन सहस्त्रार पे इस प्रकार रोज एक चक्र पे अभयास करने से सफलता प्राप्त होती है।।।
श्री नाथ जी का आसन शरीर को कहा जाता है और नाथ जी का धुना पेट में होता है जो जन्म लेते ही चेतन हो जाता है और अंतिम समय तक चेतन रहता है इस धुनें का बुझना ही मृत्यु है।बाहर कुछ नहीं यदि बाहर होता तो श्री नाथ जी गुफा में क्यों बैठते।
वे जाना गए थे की बाहर कुछ नहीं।
जब तुम समझ जातेभो सअतय को तो समाज आपको भगवान या गुरु बना लेता है और पूजने लगता है किन्तु खुद प्रयास नहीं करता सोचता है कुछ करना भी न पड़े और काम भी हो जाए।।
और अभी कलयुग मइ गुरु बन्ने की प्रतिस्पर्धा हो गई है किन्तु ।।।अनेको शिष्य बनाने का फैशन हो गया है।। किन्तु सफल गुरु तो वही होता है जो अकेले में शिष्य होता है।।। सही मायने में कोई गुरु है ही नहीं सभी शिष्य ही है।।।।
ज्ञान तो सद्गुरु से ही प्राप्त होता है पत्थर की मूर्ति कुछ नहीं देती।। सिवाय ठोकरों के। ये मेरे विचार नहीं है ये तो विचार गुरु गोरखनाथ जी का है।मेरा नहीं।।।
जितने अन्य नाथ गुरु गोरख के शिष्य है उतना मई भी ।इसमे कोई भेद नहीं।। जाहे वे सिद्ध हो या पूर्व सिद्ध ।। सब गोरखनाथ जी के शिष्य मेरे गुरु भाई है। गुरु मात्र गोरखनाथ जी।।।
आदेश
धरती मैया को आप जो भी दोगे वो उसको हजार गुना शक्ति प्रदान कर वापस करा देती है यही नियम है।।। एक आम का बिज बोने से वो उसे हजारो आमो में बदल देति है ।जमीन में जिसको भी गाडोगे वो वापस कई गुना शक्ति शाली हो कर वापस आयेगा यही नियम है।। फिर वो शव क्यों नहो।। वो अमर हो जाएगा।। और आहावाहन पे वो अवश्य आ जाएगा।। यही नियम है एक धर्म का जो गाड़ने पे विश्वास रखता है। यहाँ मुक्ति नहीं है।।।
किन्तु गोरख कोई शारीर नहीं एक पद है। एक विचार है। गोरख बन्ना है गोरख की पूजा नहीं करनी।। गोरख हो जाना ।मात्र जीवन भर अकेले रहना ।सगे सम्बन्धी भी मात्र शमशान तक ही साथ देते है और वापसी पे एक बार मुड कर भी नहीं देखते की कही मरा व्यक्ति वापस ना आ जाए। बस हम ही जीवन भर रिश्तो में डूबे रहते है।
इसी कारण हिन्दुओ में अग्नि संस्कार होता है क्योकि जलाए बिना शारीर पञ्च तत्वों में विलीन नहीं होता। और जब भी याद करो प्रकट हो जाएगा।।जो लोग जिते जि अच्छे इन्सान होते है वो मृ्त्यु के बाद देवता और बुरे लोग मृ्तु के बाद शैतान बन जाते है !! ये तो सन्स्कार पर निर्भर करता है कि जिते जि आप्मे कैसे सन्सकार उपस्थित थे !!मृ्त्यु के बाद दो बाते हो सकति है पुनह जन्म या फिर जन मरण से छुटकारा ! किन्तु कुछ अमर हो जाते है !!
इस संसार मे तिन प्रकार से पुजा अराधना करि जा सकति है !
1.इन्सान कि पुजा जिससे धन नाम  की प्राप्ति होति है !
2.भगवान की पूजा जिससे मोक्श मुक्तिका मर्ग प्रशस्त होता है
3.मुर्दो की पुजा!!जो कल तक जिवित थे किन्तु अभि नहि है किन्तु गडाने के कारण वे  उपस्थित हो सकते है!
ये तिनो ही पुजा आहवाहन से सफल होती है !!
साधु सन्तो को जलाया नहि जाता क्योकि वे फिर जिवन नहि लेना चाहते किन्तु समाज के कल्याण के लिये वे आहवाहन पर उपस्थित हो सके!!श्री नाथ पन्थ मे सिद्धो को जलाया नहि जाता !! कब्रों को क्या फरक पडता है उसे फुलो से मारो या पत्थर से  यदि आहवाहन होगा तो वो प्रगट हो हि जायेगा !ाउए वो आयेगा तो छोडेगा नहि !!सुधार हि देगा आपको !!ापने सन्सकार जो जिवित अवस्था मे असने ग्राहण किये थे उसि के अनुसार वो आप्के चरित्र को बदल देगा !! यदि वो सहि हुआ तो ठिक नहि तो आप परेशानि मे पढ जायेगे !! क्योकि जिसे बुलाया जाता है उसे भगाया नहि जा सकता !! फिर वो देवता हो मानव हो या फिर दानव !!
आपकि एक ईच्छ को तो वो पुरि कर देगा किन्तु बाकि इच्छाओ का वो दमन कर देगा !
गोरख किसि को नहि मानता  ना हि पुकारता है !!फिर वो सुर हो असुर हो या मुर्दा !!सब को  को गोरख से भय रहता है!! गोरख खुद को बनाना है गोरख कि पुजा नहि करनी !ापने गुरुदेव को भि गुरु गोरख ने ही समहाला था ! यहि सत्य है !कि गुरु भि अक्सर भटक हि जता है !शिश्य बने रहना हि उत्तम होता है !गुरु पद से प्रथम तो अहन्कार का जन्म होता है और अहन्कार कहि भि पहुचने नहि देता !
धन ,नाम ,मान सम्मान मानव की पुजा से हि प्राप्त होता है देवताओ कि पुजा से नहि होता है !भगवान की पुजा से भक्ति एवं मुर्दा पार्टि बदलता रहता है!!! वो किसि का भि नहि होता !!  तन्त्र में मुर्दो को वश मे कर के अपनि ईच्छा से कार्य करवाने की विधि भि होति है !!किन्तु इस विधि से मुर्दा कार्य तो करता है किन्तु समय मिलते ही या साधक के सुरक्षा चक्र के कमजोर पडते ही साधक का अन्त कर देता हे !!शास्त्र कारो ने एवं श्री भगवान श्री कृ्ष्ण जि ने भि श्री गीता जी मे मुर्दो कि पुजा करने से मना किया  हे !!किन्तु भगवान शिव शंभु का निवास शमशान मे माना गया है !! अन्य साधु सन्त ब्रहमचारि भि स्मशान मे निवास करते है !! श्री अवधुत चिंतन मे भगवान दत्तात्रेय जि का निवास स्थान स्मशान मे बताया गया है क्यो !!हनुमान जि का निवास स्थान स्मशान हि होता है क्यो ???क्योकि संसार मे मात्र स्मशान हि एक ऎसा स्थान है जहाँ स्त्रीयाँ रात्रि मे निवास नहि करती !! बाकी पुरे संसार मे स्त्री का सम्राज्य है!!
स्त्रीं के पास एक विषेश प्रकार की शक्ती होती है जिसे कहते है अस्तित्व हिन शक्ति !!अस्त्तित्व को खिचने की शक्ति !!इसी कारण स्त्रीयों के समक्ष पुरुषो का व्यक्तित्व बदल जाता है और वह दया,दास्तव या कामुकता का भाव ग्रहण कर लेता है !!
तन्त्र में कैलाश मस्तक को कहा गया है और कैलाश महास्म्शान या निर्जन के बाद आता है!!और इस स्मशान मे मन की ईच्छाओ की चिता जलती रहती है! सभि शास्त्रिय व्याख्यानो को रुपको मे बताया गया है और पहेलियो मे छुपाया गया है सभि पहेलियों को सुलझाने कि आवश्यक्ता है!! सब को डिकोड करने की आवश्यक्ता है !! हमारे सिद्ध ऋषि मुनियों ने यह ग्यान मन्दिरों के भितर मुर्ति एवं कलाकृ्तियो के माध्यम से बना रखा है !! सभि सिद्ध व पुरातन मंदिरो की स्थापना कुण्डलि शक्ति के स्वर एवं व्यन्जनो के माध्यम से कि हुई है !! हर अक्षर का क्या स्वरुप है उस मन्दिर की मुर्तियों मे विराजमान है !!
इसी प्रकार की एक सुत्र शिर्डि के काले हनुमान जी के मंदिर के बाहर भी देखा !! जो की इस का मुख्य उदाहरण है !! किन्तु मैने देखा कि कोई उस रहस्य को समझ्ना नहि चाहता था सब उस मुर्ति की पुजा कर रहे थे बल्की वो कलाकृ्ति मे किसि देवता की नही बलकी दोसाँपो के आपस मे जोडे हुये थे जो की कुंड्लिनि शक्ति के प्रतिक है !! आप ऎसे कह सकते है की एक नक्शा है उस खजाने तक पहुचने का जहा परम आनद है सुख हि सुख है !!और उस परम आनद तक पहुचने के साक्श मंदिरो मे सार्वजनिक तरिखे से रखे गये है !! जिसे जो चाहे अपनि बुद्धि से या गुरुगम्य ग्यान से ससमझ सकता है !!किन्तु गुरु मार्ग सरल और कम परिश्रम का होता है !! बाकि मे भटकने का भय होता है! उज्जैन के बहुत से मंदीरो मे ऎसे प्राचिन चिन्ह उपस्थित है !!क्यो की ऊज्जैनि वासी इन बातो को गुरु कृ्पा से प्राप्त कर सके थे! गुरुदेव के आदेश से शिश्य 12 वर्षो मे इन 54 स्थानो के दर्शन करता है जिनके दर्शन का एक निश्चित क्रम होता है !!जिनकी पुर्ण सन्ख्या 108 की है !!जिसमे 54 महादेव-विष्णुजी के एवं 54 माई के स्थान है!!!
उज्जैन के श्री हर्सिद्धिदेवि के मंदिर में अंदर से उपर की ओर देखने से जो संरचना दिखाइ गई है वह  सहस्त्रार चक्र की संरचना है !!जो भितर से दिखाइ देगी ध्यान में!!
उस सहस्त्रार चक्र के मध्य बिन्दु मे श्री नाथ जी  का आसन होता है!!इसे समझने के लिये हमे अनुभुत करना होगा की हमारा शरिर ईलेक्ट्रांन जैसा हो गया है किन्तु हम देख सकते है और याद रख सकते है!! इसे हि तन्त्र मे "अणिमा सिद्धि" के नाम से जाना जाता है!
उज्जैन तो भुतो -प्रेतो,बेतालो की बस्ति है जहा के राज स्व्यं महाकाल महादेव है वहा सब की ईच्छा पुरि होती है !! किन्तु मेरे ग्यानानुसार उस शर मे जाना तो कुछ नियमो को निभाना आवश्यक है जैसे पहला कि उस शर मे नहि रुकना और दुसरा उस स्थान कि कोई वस्तु घर मे नहि लाना !! क्योकि उज्जैन महाशमशान है और स्मशान कि वस्तु घर मे लाना मना है !!इन दो नियमो को न मानने के कारण मुझे बहुत कष्ट उठाने पडे थे !!ये मेरा निजि मत है !!
इस सहस्त्रार का मध्य बिन्दु मुलाधार चक्र से जुडा होता है! जैसे हि हम सहस्त्रार मे ध्यान लगाये तो कंपन मुलाधार मे महसुस होता है और इसके विपरित यदि ध्यान मुलाधार चक्र मे लगाने से कंपन सहस्त्रार चक्र मे महसुस होता है !
तो मुलाधारचक्र क्या है???
जिवन का मुलाधार क्या है?
आत्मा का जन्म कामना से होता है  और कामना क्या हो सकती है जन्म की ??
क्योकि आत्मा तो सब कर सकता है!!! तो फिर जन्म की क्या आवश्यक्ता ?? शरिर धारण की क्या आवश्यक्ता ???
भोग(काम,)  और भोजन 
यहि वो दो कामनाये है जो जन्म का कारण होती है!!!
इन दो कामनाओ के कारण हि होता है मानव का !! भजन तो गुरु सिखाते है!!
!इन दो कार्यो के अलावा आत्मा सब कर सकता है ! यहि जिवन का मुलाधार है !!भोग मुलाधार की प्रवृ्त्ति है और भोजन मनिपुर चक्र(3रा चक्र) की !! इसि कारण जो लोग ज्याद भोजन खाते है उनकी उर्जा मणिपुर नाभी चक्र मे रुक जाती है!!और् जो ज्यादा भोग करते है उनकि मुलाधार में!
इसि कारण साधना काल मे शिश्यो को प्रशाद स्वयं खाना होता है!
मणीपुर चक्र का बिज मन्त्र "रां" है किन्तु इन दोनो के मध्य भि एक चक्र उपस्थित होता है जिसे स्वाधिस्थना चक्र कहा जाता है!! यहा शरिर मे जल का स्थान है! सिर्फ इन तिन चक्रों तक हि गृ्हस्त या आम मानव का जिवन बित जाता है !! मुलाधार को ही लंका नगरि भि कहा जाता है !एवं "रां" बिज होने के कारण राम !!एवं इन दोनो के बिच का चक्र समुद्र कहलाता है!! जिसको पार कर श्री राम ने लंका अधिपति रावण का अन्त कर सिता जी को आजाद करवाया था!!
मुलाधार चक्र की सक्रियता के लिये चार भाव होते है काम,क्रोध,लोभ और मोह !!इन चार भावो के उपस्थित होते हि मुलाधार कि स्क्रियता बड जाति है !!इन चार भावो को जगाना ही मुलाधर की स्क्रियता है!!कलियुग मे इन भावो की प्रधानता है!!इस चक्र पर ग्यान  नहि होता !! यह चक्र का स्व्भाव स्त्री के स्वभाव के समान होता है!!यहा महादेव नहि होते !! इसे ही महाकालि की मुर्ति मे शिव  को शव रुप मे दिखाया जाता है !!यह पुर्ण रुप से नकारात्मक स्थान है!! इस्के बाद क्रमश: उपर के चक्र पवित्र होते हुये सकारात्मक हो कर गुरुदेव की शरण मे विलिन हो जाते है!!
नविन साधको से निवेदन है की वे इस पोस्ट को ज्ञानार्थ ही ले एव सही गुरु के निरदेशन में प्रयोग करे।
आदेश नमो नम: !

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

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