!!मरघटिया वैराग!!
आपने कभी सूना है ?
"मरघटिया वैराग" का नाम??
जब कभी किसी परिचित की काठी में आप जाते है
तो यह वैराग सभी में उतपन्न हो जाता है कुछ समय के लिए
हर व्यक्ति वैरागी हो जाता है| सब भूल जाता है मन |
मरघट में कुछ समय के लिए वैराग के भाव जन्म ले लेते है!
स्मशान में जलती चिताओ को देख कर
यह भाव जन्म लेते ही है की
ये जीवन क्या है?
यह संसार क्या है?
मैं कौन हूँ?
मैं कहाँ से आया हूँ?
और एक दिन मैं भी मर जाऊँगा?
जब मरना ही सत्य है ?
तो फिर व्यर्थ में वस्तुओ का एकत्रीकरण क्यों?
और इस मृत्यु के बाद मैं कहाँ जाऊँगा?
सब कुछ उस पल में भूल जाता है मन!
एक अजब सी मन:स्थिति का उस पल पे जन्म होता है!
किन्तु जब अंतिम संस्कार के बाद जैसे ही अपने रिश्तेदारो,मित्रो से भेट होती है तो यह वैराग ख़त्म हो जाता है!
फिर वही पुरानी दुनिया,वही पहले जैसे विचार,मौज मस्ती,में
समय व्यतीत होता जाता है!
कुछ समय पहले स्मशान में आप कुछ और थे और
कुछ समय बाद आप कुछ और हो जाते है!
बस यही है "मरघटिया वैराग" !
जो स्मशान में कुछ समय के लिए पैदा होता है!
इस कुछ समय की मन:स्थिति को हमेशा बनाये रखना है
पूर्ण वैराग्य है!
"क्योकि सत्य की छांव में कुछ भी असत्य नहीं लगता"
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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