श्री सूक्तम
ॐ हिरण्य वर्णाम हरिणीम् सुवर्ण रजतस्त्रजाम् । चन्द्रम हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वाह ॥ १
भावार्थ :
हे जातवेदा सर्वज्ञ अग्नी देव आप सोने के समान रंग वाली किंचित हरितवर्ण से युक्त सोने व चांदी के हार पहनने वाली ,चन्द्रवत प्रसन्नकांति स्वर्ण मयी लक्ष्मी देवी का मेरे लिय आवाहन करे ।
मन्त्र में छिपी गूढ़ युक्ति :
इस मन्त्र में युक्ति है अग्नी यानि ऊर्जा जो हमारे भीतर है का पूरा उपयोग हम करे तो सफलता व लक्ष्मी स्वमेव आएगी । हमे प्रयत्न पूर्वक चन्द्रवत यानी मधुर प्रकृति रखनी होगी काम को बोझ मानने के बजाय उसे पूजा माने व प्रसन्न ह्रदय से अपनी पूरी ऊर्जा का उपयोग अपनी समृद्धि के लिए करे हमारे को परमात्मा ने भरपूर ऊर्जा दी है । हम अपने जीवन अत्यंत अल्प मात्रा में अपनी ऊर्जा का उपयोग करते है ।
ताम म आवाह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्याम् हिरण्यं विन्देयं गामस्वम पुरुषानहम् || २ ॥
भावार्थ:
हे अग्ने उन लक्ष्मी देवी का जिनका कभी विनाश नहीं होता है तथा जिनके आगमन से मै सोना, गौ ,घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करू मेरे लिए आवाहन करे ।
मन्त्र में छिपी गुड युक्ति :
जो कुछ प्राप्त होना है वह मेरे कर्मो से मिलना है मंत्र में युक्ति है अपनी ऊर्जा का भरपूर उपयोग । क्योकी बिना लक्ष्मी के न विवाह संभव है ना मकान , वाहन आदि फिर पुत्र पौत्रादि की कामना कैसे सिद्ध हो सकती है केवल हम इस्वर प्रदत्त पूर्ण ऊर्जा का प्रयोग अपने सकारात्मक उपयोग के लिए करे ।
अश्व पूर्वाम रथ मध्याम हस्तिनाद प्रमोदिनीम् । श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषतां ॥ ३ ॥
भावार्थ :
जिन देवी की आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते है तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होते है ,उन्हीश्री देवी का मै आवाहन करता हूँ , लक्ष्मी देवी मुझे प्राप्त हो ।
मन्त्र में छिपी युक्ति :
इस मंत्र की युक्ति है जो सुविधा हमे उपलब्ध है उसमे हम प्रसन्न कांती रहे मानो हम हर तरह से सम्पन्न है और सम्पन्नता की यात्रा के मार्ग पर अनवरत चल रहे है । यानी सकारात्मक सोच ।
काम सोस्मिताम् हिरण्य प्रकारामदराम ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् पद्मेस्थिताम् पद्मवर्णाम् तामिहोप ह्वये श्रियं ॥ ४ ॥
भावार्थ :
जो साक्षात ब्रह्मरूपा, मंद मंद मुस्कराने वाली , सोने के आवरण से आवृत , दयार्द्र , तेजोमयी , पूरनकामा , भक्तानुगृह कारिणी, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्मवर्णा है ,उन लक्ष्मी देवी का मै यहाँ आवाहन करता हूँ ।
मन्त्र में छुपी युक्ति :
जो ब्रह्म रूपा यानि ज्ञानी से तातपर्य सफलता विफलता में सम दृस्टि , हर स्थिति मेमुस्कराते रहने वाला ,
उत्तम वस्त्रो से युक्त , प्राणी मात्र पर दयाभाव , तेज युक्त, पूर्ण कामा यानि { फुली सेटिस फाइड } पूर्ण सन्तुस्टी भक्तानुग्रह कारिणी माने अपने अधीन काम करने वालो चाहे वे परिजन हो या कर्मचारी उन पर अनुग्रह यानि कृपा भाव बनाये रखने के सामर्थ्य हो , कमल के आसन पर विराजमान यानि कमल के समान जो कीचड़ जैसी गंदगी व पानी अति निर्मल है दोनों से अप्रभावित है । कमल कीचड व पानी दोनों से अपने को अप्रभावित रखता है । अथार्थ हम पर पुष्प वर्षा करे या कीचड़ उछाले हमे दोनों स्थितियों में सम रहना है ।
हमे अपनी ऊर्जा का अपने सद कार्य में भरपूर उपयोग करना है यही लक्ष्मी का सच्चा आवाहन है ।
चन्द्रां प्रभासां यशसा जवलन्तीम् श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम ।
ताम पद्मिनीम् शरणम् प्र पद्य अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वाम वृणे ॥ ५ ॥
भावार्थ :
मै चन्द्रमा के समान शुभ कान्तिवाली , सुंदर द्युतिशालिनी , यश से दीप्तिमती , स्वर्ग लोक में देवगणो के द्वारा पूजिता , उदार शीला , पद्महस्ता लक्ष्मी देवी की शरण ग्रहण करता हूँ । मेरा दारिद्र्य दूर हो जाये इस हेतु मै आपकी शरण लेता हूँ ।
मन्त्र में छुपी युक्ति :
चन्द्रमा के समान शुभ कांति माने शांत प्रकृति ,सुंदर द्युतिशालिनी माने विद्युत के समान त्वरित निर्णय , जो भर्मित अवस्था से दूर है त्वरित निर्णय लेकर कार्य रूप में परिणित करता है तो उसका सम्मान स्वर्ग के देवता भी करते है माने समाज के प्रतिष्ठित लोग भी ऐसे व्यक्ति की कद्र करते है जो व्यक्ति उदार है , निर्णय शील व कर्तव्य निष्ट है तो लक्ष्मी उसका स्वमेव वर्ण करती है उसका दारिद्र्य खुद ही दूर हो जाता है ।
आदित्यवर्णे तपसोअधि जातो वनस्पति स्तव वृक्षों अथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपस्या नुदन्तु या आन्तरा यास्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ६ ॥
भावार्थ :
हे सूर्य के समान प्रकाश स्वरूपे तपसे वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्व वृक्ष उत्पन्न हुवा उसके फल आपके अनुग्रह से हमारे बाहरी और भीतर के दारिद्र्य को दूर करे ।
मन्त्र में छुपी गूढ़ युक्ति :
सूर्य के तेज से पका हुवा बील का फल अमृत के समान है यानि ऐसे ही अन्य प्राकृतिक फल व अनेक शाक,भाजी व फल अनन्त शक्ति से युक्त होते है के सेवन से हमारा अंदर का पाचन संस्थान व अन्य अंग मजबूत होंगे और चेहरे पर स्वमेव तेज दिखेगा यानि भीतर व बाहर हम तेज से युक्त होंगे और अपनी पूरी ऊर्जा से कार्य कर पाएंगे तो हमे धन संपन्न होने से कोनरॉक सकता है । यानि आजकल के डिब्बा पैक तय्यार भोजन के बजाय ताजा फल व सब्जियों का सेवन कर हम अपने को मजबूत बनावे व निरोग रखे ।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्रदुर्भूतो अस्मि राष्ट्रे अस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ॥ ७ ॥
भावार्थ :
हे देवी देव सखा कुवेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापती की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हो अथार्थ मुझे धन व यश की प्राप्ति हो । मै इस देश में उतपन्न हुवा हूँ मुझे कीर्ति और ऋद्धि प्रदान करे ।
मन्त्र में छुपा ज्ञान :
यदि हम उदार है , हममे करुणाभाव है , निर्णय शक्ति है उसे कार्य रूप मेपरिणीत करने का साहस है हम अंदर व बाहर से मजबूत है तो धन स्वयमेव आएगा कुवेर आदि सभी देव दक्ष प्रजापति की संतान है और समस्त कन्याये जो वर्तमान में भी अन्ततः है तो प्रजापति दक्ष का ही अंश चाहे वह सूर्य वंशी हो या चंद्रवंशी ।
हम मेहनती है ईमानदार है तो धन खुद आएगा और कन्या का पिता पत्नी के रूप मेअपनी कन्या भी देगा जो है तो ब्रह्मा के द्वारा उत्पन्न दक्ष के वंस से ही है ।
क्षुत पिपासामलाम् जेस्ठा मलक्ष्मीम नास्या मेहम । अभूतिम समृद्धिम् च सर्वां निर्णुद में गृहात ॥ ८ ॥
भावार्थ :
लक्ष्मी की जेष्ठ बहन अलक्ष्मी जो भूख और प्यास से मलिन क्षीण काय रहती है उसका मै नाश चाहता हूँ । देवी मेरा दारिद्र्य दूर हो ।
मन्त्र में छुपा गूढ़ रहस्य :
ऊर्जा हममे ही विद्यमान है उसको और बढ़ाने हेतु प्राकृतिक फल , सब्जिया यही विध्यमान है शांत प्रकृति, उदारता निर्णय शक्ति आदि भी हमे बाहर से उधार नहीं लानी है । यानी जो ऊर्जा ईश्वर ने हमे प्रदान की है का उचित उपयोग हम कर ले तो दारिद्र्य हमसे दूर ही रहेगा ।
परमात्मा द्वारा दी गई ऊर्जा का उपयोग हमे ही करना होगा ।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्य पुष्टां करीषिणीम् । ईस्वरीम सर्वभूतानां तामि हॉप ह्वये श्रियं ॥ ९ ॥
सुगन्धित जिनका प्रवेशद्वार है, जो दुराधर्षां तथा नित्य पुस्ठा है और जो गोमय के बीच निवास करती है सब भूतोकी स्वामिनी उन लक्ष्मी देवी का मै अपने घर में आवाहन करता हूँ ।
मंत्र में छिपा रहस्य :
यहाँ सुगन्धित से घर, व्यापार , उद्योग, समाज , दाम्पत्य आदि में परस्पर मधुर वेवहार हो तो जो कार्य आप करेंगे वह निर्विघ्न होगा । उद्योग में कर्मचारियों व मालिक में मधुर सम्बन्ध नहीं है तो उद्योग हमेसा संघर्स का सामना करेगा तो उत्पादन ठीक हो ही नहीं सकता है । ऐसे ही परिवार में अशांति है तो निश्चय ही परिवार के सदष्य एक दुसरे को सहयोग नहीं करेंगे फलस्वरूप यथोचित परिणाम आएगा ही नही ।
अतः लक्ष्मी प्राप्ति हेतु वातावरण में शान्ति व सहयोग प्रथम शर्त है जहां वातावरण चाहे पारिवारिक, सामाजिक, वेवसायिक यदि उत्तम है तो सभी लोग काम को मन लगा कर करेंगे फिर लक्ष्मी व यश प्राप्त नहीं हो ऐसा हो ही नही सकता है ।
मनसः काम मकुतिम वाचः सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमनस्य मई श्री श्रयतां यशः ॥ १० ॥
मन की कामनाओ और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो , गो आदि पशुओ एवं विभिन्न अन्नो भोग्य पदार्थो के रूप में था यश के रूप में श्री देवी हमारे यहाँ आगमन करे ।
मंत्र में छुपी युक्ति :
मन की कामना को लक्ष्य बनाकर उस पर दृढ़ हो जाय व हमारी वाणी में सत्यता हो तो हमारी विस्वश्नीयता स्वयं बन जाएगी । संकल्प व उसकी प्राप्ति हेतु धैर्य से निरंतर प्रयासरत रहना चाहिय सफलता व समृद्धि एवं यश को कोई नहीं रोक सकता है ।
कर्दमेन प्रजा भूता मई संभव कर्दम । श्रीयम वासय में कुले मातरम पद्ममालिनीम् ॥ ११ ॥
लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान है । कर्दम ऋषि आप हमारे यहाँ उतपन्न हो तथा पद्मो की माला धारण करने वाली माता लक्ष्मी देवी को हमारे कुल में स्थापित करे ।
अथार्थ :
इसमें पर्भु से प्रार्थना है महर्षि कर्दम जैसी महान संतान हमारे घर में उत्पन्न हो जिससे हमारा सम्मान समाज में बढे । केवल धन प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है उत्तम परिवार, संस्कारित संतान भी हमारे घर में हो तभी सही में लक्ष्मीवान है अन्यथा नहीं ।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे । नि च देवीम मातरम श्रियम वासय में कुले ॥ १२ ॥
जल स्निग्ध पदार्थो की श्रिस्टी करे । लक्ष्मी पुत्र चिक्लीत आप भी मेरे घर में वास करे और माता लक्ष्मी देवी का मेरे कुल में निवास कराये ।
आर्द्रां पुष्करणीम् पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् । चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वाह ॥ १३ ॥
हे अग्ने आर्द्र स्वभाव , कमल हस्ता , पुष्टिरूपा , पीतवर्णा , पद्मो की माला धारण करने वाली , चन्द्रमा के समान शुभ्र कांति से युक्त स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी का मेरे यहाँ आवाहन करे ।
अथार्थ :
लक्ष्मी की प्राप्तिआपके भीतर जो अग्नि या ऊर्जा है उसके उपयोग से ही संभव है ।
आर्द्रां यः करिणीम् यष्टिं सुवर्णाम् हेममालिनीम् । सुर्याम् हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वाह ।। १४ ॥
हे अग्ने जो दुस्टो का निग्रह करने वाली होने पर भी कोमल स्वभाव की है , जो मंगल दायिनी , अवलंबन प्रदान करनेवाली यष्टि रूपा, सुन्दर वर्णवाली , सुवर्णमालधारिणी , सूर्य स्वरूपा तथा हिरण्य मई है, उन लक्ष्मी देवी का मेरे लिए आवाहन करे ।
अथार्थ :
जो दुस्टो का समन करने की सामर्थ्य होने के उपरांत भी दयार्द्र है ऐसे व्येक्ति अपनी सामर्थ्य का पूर्ण उपयोग कर लक्ष्मी का अपने लिय वर्ण करते है । अतः शक्ति चाहे बाहु बल की हो , धन या बुद्धि बल हो उसका अहंकार करने के बजाय उसका सकारात्मक उपयोग करना चाहिय । धन व यश की प्राप्ति स्वमेव होगी ।
ताम म आवाह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्याम् हिरण्यम प्रभूतं गावो दाशयो श्वान विन्देयं पुरुषानहम ॥ १५ ॥
हे अग्ने कभी नष्ट न होने वाली उन लक्ष्मी देवी का मेरे लिय आवाहन करे, जिनके आगमन से बहुत सा धन, गोए , दास , अश्व और पुत्रादि हमे प्राप्त हो ।
अथार्थ :
कभी नष्ट न होने वाला धन सिर्फ हमारी ऊर्जा ही है जिसके द्वारा धन की निरंतरता बनी रहती है कारण जो धन प्राप्त होगा वह तो खर्च भी होगा पर हमारा पुरुषार्थ हमे निरंतर धन प्रदान करता रहेगा ।
यः शूचीः प्रयतो भूत्वा जुहुयादज्या मन्वहम् । सूक्तम पंचदसर्च च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६ ॥
जिसे लक्ष्मी की कामना हो , वह प्रतिदेिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नी में घी की आहुतिया दे तथा इन पंद्रह रिचा वाले श्री सूक्त का निरंतर पाठ करे ।
अथार्थ :
जीसे धन की अभिलाषा है उसे अपने उद्यम रुपी यज्ञ में अपनी उरंजा रुपी घी के निरंतर आहुती देवे तो लक्ष्मी स्वमेव आएगी ।
निष्कर्ष :
श्री सूक्त में पंद्रह मन्त्र है और इनमे हमारी सफलता या लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु हर मन्त्र में कोई युक्ति है उसका पालन करने से ही वैभव या लक्ष्मी की प्राप्ति होगी । इसमें वर्णित है हमारी ऊर्जा का पूर्ण उपयोग करे जीवन में धैर्य रखे हमारी वाणी में सत्यता हो हम अपने से छोटो के प्रति करुणा अपने बराबर वालो के साथ मित्र एवं बड़ो के साथ सम्मान का बर्ताव करे । उत्तम फल व वनस्पतियो के सेवन से भीतर व बाहर की ऊर्जा का संवर्धन करे । हममे दूरदर्शिता, पारदर्शिता, सुचिता, सप्स्टवादिता , सत्यता कर्म में निरंतरता बनी रहे तो धन व मान आपका वर्ण करेगा । जीवन को सुख व सम्मान के साथ जियंगे ।
आवो श्री सूक्त का पाठ करे एवं इसमें वर्णित या इंगित बातो को अपने जीवन में उपयोग करे आपको समृद्धिवान होने से कोई नही रोक सकता है ।
श्री मन नारायण श्री मन नारायण ।।