||भगवान् श्रीकृष्ण की 16108 नारियों का रहस्य ।।
आप सब ने सूना होगा भगवान श्रीकृष्ण की 16108 नारियाँ थी जिनमे से 9 मुख्य पटरानियाँ थी जिन्हें भगवान का विशेष सानिध्य प्राप्त था।इसमें क्या रहस्य है?16108 रानियाँ कैसे?
भगवान् ने इतने सारे वाद्य यन्त्र होने के बाद भी बाँसुरी का ही चयन किया क्यों?
भगवान् की लीला तो भगवान ही समझ सकते है।
ये सब बाते गूढ़ रहस्यों से भरी हुई है।इन्हें समझना आसान नहीं है।प्रारंभिक ऋषियों ने सब कुछ समझा और पहेलियो एवम् रूपको के माध्यम से मानवो के समक्ष रखा ।इन्हें समझने के लिए गुरुदेव की आवश्यकता होती है या फिर बुद्धि के घोड़े दौड़ाने पड़ते है।समझ आया तो ठीक अन्यथा ये सब निंदकों का आहार बन जाते है।
जितना भी आध्यात्मिक रहस्य बाहर समझाया जाता है वो बाहर का नहीं बल्कि अंतर जगत का विश्लेषण होता है ।
"मणिपुर चक्र "
नाभि का वह स्थान जहा भगवान विष्णु का निवास होता है।इस स्थान को "बैकुंठ"कहा जाता हैं।इस स्थान पर दस दल कमल विराजमान है।यहाँ भगवान विष्णु को को एक विशेष मुद्रा में शयन करते चित्र में दिखाया जाता है।इस स्थान में 16108 बड़ी-छोटी नाड़ियां आपस में आ कर मिल जाती है।यही नाड़ियाँ भगवान की "नारियाँ"कहलाती है।या आप यह भी कह सकते है की कालानतर के प्रभावसे शब्दों में परिवर्तन हो गया और नाडियों ने नारियो का नाम ले लिया।
"नौ नाड़ी पुरो देही"
जब आप बाँसुरी बजाते है तब पूरा जोर नाभि पर लगता है जिससे इस स्थान में तरंगो का उत्सर्जन लगातार होने लगता है।एक प्रकार का अनहद नाद बजने लगता है इसी स्थान में दशविद्याए भी निवास करती है और सब का नियंत्रण श्वांस से हो होता है।यही रहस्य है भगवान के बाँसुरी धारण करने का।जिस बाँसुरी को सुनकर श्रद्धा,विश्वास,प्रेम रूपी गोप-गोपियाँ मोहित हो जाती है।इस स्थान का ध्यान करने से साधक अंतर मुखी हो जाता है।
मध्यमा और अंगुष्ठ को मिलाने से यह चक्र जागृत हो जाता है।और शरिर में ऊष्मा उत्पन्न होने लगती है।इस स्थान पे क्रमशःडन से फन तक 10 धवनियो का निवास होता है।इस स्थान का बिज मंत्र "रन" अर्थात रणछोड़ है।।
व्यक्तिगत अनुभूति एवम् अंतरध्वनि...
क्रमशः।।
""जयश्री महाकाल""
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
******राहुलनाथ********
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
फेसबुक परिचय:-https://m.facebook.com/yogirahulnathosgy/
चेतावनी-हमारे लेखो में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है। लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)
ब्लॉग साइड पे दिए गए गुरुतुल्य साधु-संतो,साधको, भक्तों,प्राचीन ग्रंथो,प्राचीन साहित्यों द्वारा संकलित किये गए है जो हमारे सनातन धर्म की धरोहर है इन सभी मंत्र एवं पुजन विधि में हमारा कोई योगदान नहीं है हमारा कार्य मात्र इनका संकलन कर ,इन प्राचीन साहित्य एवं विद्या को भविष्य के लिए सुरक्षित कारना और इनका प्रचार करना है इस अवस्था में यदि किसी सज्जन के ©कॉपी राइट अधिकार का गलती से उलंघन होने से कृपया वे संपर्क करे जिससे उनका या उनकी किताब का नाम साभार पोस्ट में जोड़ा जा सके।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें