शनिवार, 30 जुलाई 2022

शिवजी को प्रिय हैं ये फूल

शिवजी को प्रिय हैं ये फूल
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मदार, चमेली, बेला, हरसिंगार, गुलाब, अलसी, जूही और धतूरे जैसे फूल भगवान शिव को अतिप्रिय होते हैं. सभी फूलों से अलग-अलग मनोकामनाएं जुड़ी होती हैं. आप अपनी मनोकामना व इच्छानुसार शिवजी को सावन में ये फूल जरूर चढ़ाएं.
जानें किस मनोकामना के लिए चढ़ाएं कौन सा फूल
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चमेली-
सावन में शिवजी को चमेली का फूल चढ़ाने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है.

बेला-
शिवजी की विशेष पूजा में बेला फूल चढ़ाना चाहिए. इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और आपको मनचाहे जीवनसाथी का वरदान देते हैं.

हरसिंगार-
सावन में शिवजी की पूजा करते समय हरसिंगार का फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस फूल को चढ़ाने से सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

मदार-
शिवजी की पूजा करते समय मदार के फूल जरूर चढ़ाएं. इसे आक और आंकड़े जैसे नामों से भी जाना जाता है. शिवजी को मदार के फूल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

धतूरा-
शिवजी को धतूरा अत्यंत प्रिय होता है. धतूरे के बिना शिवजी की पूजा अधूरी मानी जाती है. सावन में शिवजी की पूजा करते समय धतूरे के फल के साथ ही फूल भी चढ़ाना चाहिए. इससे संतान की प्राप्ति होती है.

गुलाब-
धन-समृद्धि के लिए सावन में शिवजी को गुलाब के फूल चढ़ाएं.
जूही- जूही के फूल से पूजा करने पर नौकरी-व्यापार में तरक्की होती है और धन संबंधी परेशानियां दूर होती है.

अलसी-
सावन में अलसी के फूल से शिवजी की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर होते हैं.संकलित पोस्ट

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#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,
मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

शनिवार, 23 जुलाई 2022

#सर्वसिद्धिप्रद_बगलामुखी_मंत्र_एवं_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम

#सर्वसिद्धिप्रद_बगलामुखी_मंत्र_एवं_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम


माँ भगवती श्री बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।
माँ बगलामुखी यंत्र मुकदमों में सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है।
माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।
प्रभावशाली मंत्र माँ बगलामुखी
#विनियोग -
अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

#आवाहन
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा ।

#ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

#मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।

इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्‍भुत प्रभाव है। इसको एक लाख जाप द्वारा सिद्ध किया जाता है। अधिक सिद्धि हेतु पाँच लाख जप भी किए जा सकते हैं। जप की संपूर्णता के पश्चात् दशांश यज्ञ एवं दशांश तर्पण भी आवश्यक है।

मां पीताम्बरा कि अमोघ और अभेद्य कृपा से परिवार सुरक्षित रहे इस हेतु श्रीबगलामुखी शतनाम स्तोत्र के रोजाना १५ पाठ करे किसी विशिष्ट कार्य हेतु दस दिन मे एक हजार पाठ करे |यदि आप नित्य पाठ करने में सक्षम नही तो इनका पाठ विधि अनुसार योग्य साधक या भक्त से करवाये।
|| जय मां पीताम्बरा ||
#सर्वसिद्धिप्रद_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम_॥
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#श्रीर्जयति ||
#ध्यानम्
गंभीरां च मदोन्मत्तां स्वर्णकांतिसमप्रभाम् ।
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासनसंस्थिताम् ॥
मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च बिभ्रतीं |
पीतांबरधरां देवीं दृढपीनपयोधराम् ||
ओम् ब्रह्मास्त्र-रूपिणी देवी  माता श्रीबगलामुखी । चिच्छक्तिर्ज्ञान-रूपा च ब्रह्मानन्दप्रदायिनी ॥१॥
महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमङ्गला ॥२॥
ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ॥३॥
जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवाङ्कस्था शिवरूपा शिवप्रिया ॥४॥
सर्वसम्पत्करी देवी सर्वलोक-वशङ्करी ।
वेदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयङ्करी ॥५॥
स्तम्भरूपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥६॥
मेनापुत्री शिवानन्दा मातङ्गी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ॥७॥
नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बरा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ॥८॥
पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ॥९॥
सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योरागविवर्द्धिनी ।
विष्णुरूपा जगन्मोहा ब्रह्मरूपा हरिप्रिया ॥१०॥
रुद्ररूपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ॥११॥
धनाध्यक्षा धनेशी च धर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ॥१२॥
राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च रक्तबीजविनाशिनी ॥१३॥
धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुरविनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥१४॥
ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ॥१५॥
वज्रपाशधरा देवी जिह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ॥१६॥
          #फलश्रुती
                
अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु य: पठेत् । रिपुबाधाविनिर्मुक्त: लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ॥
भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीडानिवारणम् ।
राजानो वशमायान्ति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥
नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् । भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ॥
॥ इतिश्री रुद्रयामले सर्वसिद्धिप्रद-श्री-बगलाष्टोत्तर-शतनामस्तोत्रम् ॥

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बुधवार, 20 जुलाई 2022

मृत्यु,समाधि और जीवात्मा ।।

मृत्यु,समाधि और जीवात्मा ।।
"मृत्यु केवल इन्द्रियों के स्वामी का शरीर से निकल जाना मात्र है"

जो व्यक्ति नित्य सोने से पहले या प्रातः उठते ही प्रार्थना का प्रयोग करते है या नित्य ध्यान करते है,उन्हें अपनी मृत्यु के पहले,मृत्यु के समय का ज्ञान हो जाता है।यही निर्मल एवं शांत चित्त के  व्यक्तियो के साथ भी हो सकता है।जैसा की मैंने सूना है मृत्यु के 6 महीने पहले से मृत्यु की छाया पड़ने लगती है एवं मृत्यु के एक दो दिन या पाँच-छः घंटे पूर्व,इसका स्पस्ट आभास होने लगता है।मृत्यु के पहले मनुष्य को विशेष अनुभूतियाँ होती है और इन अनुभूतियों की पहले से जानकारी ना होने के कारण 80 प्रतिशत मनुष्य की मृत्यु भयभीत होने से,बेहोशी की अवस्था में हो जाती है उन्हें उनके मरने का ज्ञान ही नहीं हो पाता है।उन्हें पता ही नहीं चल पाता की उसकी मृत्यु हो गई है और वो शरीर से अलग हो चुका है।ठीक इसके विपरीत समाधि की अवस्था है इसमें भी मृत्यु होती है किन्तु इसमें साधक को मृत्यु से भय नहीं होता।समाधि होश में मृत्यु है।समाधि कोई आकास्मिक घटना नहीं है समाधि में एक बार मृत्यु नहीं है समाधि नाम हैं होष में रह कर शरीर के हर चक्रों-कोशो को मारते हुए अंत में सहस्त्रार (शीर्ष में उपस्थित चंद्र स्थान,जो बाल्यावस्था में पोला होता है) से प्राणों को बाहर निकाल देने का।ऐसी अवस्था को प्राप्त करने के लिए जीवन भर साधना एवं गहरी एकाग्रता की आवश्यकता होती है।इस एक पल की मृत्यु के लिए साधक को लगातार मृत्यु की साधना करनी होती है।एक बार की समाधि के लिए साधक को रोज रोज मारना होता है।
युवावस्था में या दुर्घटना वष मरने पर मनुष्य को मृत्यु का अनुभव होता है किन्तु 90 वर्ष की अवस्था में मृत्यु होने पे ये अनुभव नहीं होता क्योकि इस आयु तक अनुभव कराने वाले कोशो की पहली ही मृत्यु हो जाती है यदा-कदा ही इस आयु में किसी को इस क्षण का अनुभव हो पाता हो।सामान्यतः देखा जाता है की स्वस्थ व्यक्ति पहली ही बिमारी ने मर जाता है वही 90 वर्ष तक जीवित रहने वाले की मृत्यु भी मुश्किल ही हो जाती है जिसकी वासना जीतनी तीव्र होगी और जीवन भोगने की इच्छा जीतनी तीव्र होगी ,उसकी आयु भी उतनी लंबी होगी।मन में जितने जल्दी वैराग्य पैदा होगा,जितने जल्दी कामनाए समाप्त हो जायेगी। उतने ही जल्दी मुक्ति प्राप्त होती है 
दुर्घटना वष जिसकी मृत्यु होती है वह इस आकस्मिक घटना के कारण भयभीत नहीं होता और वह भी अपनी मृत्यु का साक्षी बन जाता है।आकस्मिक दुर्घटना में मृत हुए व्यक्ति के भविष्य की योजनाये एवं कामनाये समाप्त नहीं हो पाती जिससे की वह बिना देह के अपनी कामनाओ को पूर्ण करने हेतु भटकता रह जाता है।ये कामनाये इस मृतक को नए जीवन की ओर अग्रसर नहीं होने देती।स्वाभाविक मृत्यु एवं दुर्घटना में मृत्यु में भेद है,सामान्यः मृत्यु से पहले धीरे धीरे शरिर के सारे कोष एवं केंद्र मरते है।उसके जीवनकाल में किये गए कर्म चित्र की भाँती आँखों के सामने घूमने लगते है जिससे सामान्य व्यक्ति धीरे धीरे पहले से ही मृत्यु के लिए तैयार होता रहता है एवं अंत में प्राण नाभि पे सिकुड़कर एकत्रित हो जाता है फिर जो उसे मार्ग मिलता है उस मार्ग से निकल जाता है।
दुर्घटना में तो मानो ऐसा है जैसा की अचानक मटके को फोड़ दिया गया हो,जैसे पौधे को अचानक धरती से उखाड़ दिया गया हो,जैसे अचानक काल के हाथो बली चढ़ गई हो।
मृत्यु की यात्रा में मृतात्मा के साथ मृतात्मा की स्मृति जाती है किसी की स्मृति 3 दिन तक साथ रहती है किसी की 13 दिन तक।इसी कारण हिन्दू धर्म में तेरहवी का संस्कार होता है जिससे की मृतात्मा का अपनी पुरानी स्मृतियों का त्याग हो और वह नव जीवन प्राप्त कर सके।
आत्मा के शरीर से निकलने पर भी उसके शरीर से 3-4 दिन तक ऊर्जा का निष्कासन होता रहता है यह उसी प्रकार है जैसे वृक्षो के साथ होता है वे कटने के बाद भी मृत नहीं होते एवं कटने के बाद भी उसे 3-4 दिनों के भीतर धरती में रोप दिया जाए एवं उसकी देख-रेख की जाए तो वह पुनः प्राणवान हो जाता है।यहाँ इस विषय को वैज्ञानिक रूप से समझने का प्रयास करते है ।
वैज्ञानिक भाषा में मृत्यु दो प्रकार से संभव है प्रथम ह्रदय की धड़कन बंद होने से डॉक्टर इसे "क्लिकनील डैथ "(शारीरिक मृत्यु)कहते है और दूसरी मृत्यु जिसमे शरीर की सारी ऊर्जा बाहर निकल जाती है उसे "बायोलॉजिकल डैथ" (जैविक मृत्यु) कहते है।इसी सिद्धांत के अनुसार "सिद्धसाधक" मरने के बाद भी जैविक मृत्यु के पूर्व किसी विशेष विधि से यदि आत्मा को शरीर में प्रवेश करा दे तो वह पुनः जीवित हो सकता है।इसे ही परकाया प्रवेश द्वारा शरीर में प्रवेश करना कहते है।धर्म ग्रंथो के अनुसार इसी कारण मृत्यु के बाद शरीर को ज्यादा समय तक नहीं रखा जाता क्योकि ऐसी अवस्था में उसकी मृत्यु जैविक नहीं होती और हो सकता है की मृतक के शरीर में कोई और ईथर योनिया अपना घर बना ले,क्योकि मालिक हिन् गृह पे अक्सर आतातायी कब्जा कर लेते है।ऐसा बहुत कम अपवाद स्वरूप ही होता है की मृत शरीर में वही जीवात्मा वापस आ सके,क्योकि मृत्यु के बाद बिस्फोट के कारण जीवात्मा शरीर से बहुत दूर चला जाता है और उसके शरीर के पास आने से पहले हो सकता है कोई और योनि इस शरीर में प्रवेश कर जाए।
सामान्यतः शरीर की आयु निश्चित होती है किन्तु सही आहार-विहार एवं स्वास्थ नियमो का पालन कर कुछ आयु बढाई जा सकती है।इसके बावजूद जिस दिन जीवात्मा को ये महसूस होता है की ये शरिर काम का नहीं रहा उस दिन ये जीवात्मा शरीर का त्याग कर देता है।आप ज्ञानी बने ,तेजस्वी बने ,ध्यानी बने,या सामान्य जीवन यापन करने वाला गृहस्त बने हर अवस्था में मृत्यु ही सत्य है शास्वत है।
कभी कभी लगता है सुख भोगो या दुःख दोनों ही काल कोठरी है इससे क्या फर्क पड़ता हैं कि कोठरी पत्थर की है या स्वर्ण की।दोनों अवस्था में भी{व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार }
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👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©२०१९
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गुरुवार, 14 जुलाई 2022

कीमत

#कीमत
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मेरी जड़ो को उसने ही खोदा जिसने मुझे रोपा था पहले उसने मेरी शाखाओं को तोड़ा ,फूलो को तोड़ा ,फलों को तोड़ा और अंत मे मेरी जड़ो को भी ...
किन्तु बीज का क्या होगा जो धरती से जुड़ गया था,मैं फिर खड़ा हो जाऊंगा बस स्मरण रहे अब ,मैं तेरा नही रहूंगा,क्योकि मुझको बोने की कीमत तू वसूल कर चुका है..
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👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©२०१७
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आपके प्रश्न

आपके प्रश्न
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मुझे ख़ुशी है इस बात की ,इतनी भूख तो अभी भी बाकी है मित्रों ज्ञान की।।जहाँ प्रश्न होता है वहा उत्तर भी होता है और उत्तर न होने की अवस्था में ,फिर एक बार ,एक नई खोज प्रारम्भ हो जाती है।
धन्य है आप एवं आपके प्रश्न जो बार बार एक नई खोज के लिए प्रोत्साहित करते है।
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

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भगवान श्री राम के संस्कृत श्लोक एवं मंत्र संग्रह

भगवान श्री राम के संस्कृत श्लोक एवं मंत्र संग्रह
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एक श्लोकी रामायण 
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आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्‌ रावण कुम्भकर्ण हननम्‌, एतद्धि रामायणम्।।

भावार्थ
श्रीराम वनवास गए, वहां उन्होने स्वर्ण मृग का वध किया। रावण ने सीताजी का हरण कर लिया, जटायु रावण के हाथों मारा गया। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। श्रीराम ने बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंका का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया।

श्री राम वंदना श्लोक 
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लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणा के भण्डार रुपी श्रीराम की शरण में हूं।

श्री राम गायत्री मंत्र 
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ॐ दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धी महि॥ तन्नो रामः प्रचोदयात्।।

भावार्थ

ॐ, दशरथ के पुत्र का ध्यान करें, माता सीता की सहमति, आज्ञा से मुझे उच्च बुद्धि और शक्ति दें, भगवान् श्री राम मेरे मस्तिस्क को  बुद्धि और तेज़ से प्रकाशित करें, बुद्धि और तेज प्रदान करें।

श्री राम ध्यान मंत्र 
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ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम, लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम।
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे, रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः।।

श्री रामाष्टक 
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हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्।।

राम पर श्लोक
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श्री राम का पाठ करने वाले हर साधक को जीवन में आने वाले कष्टों से राहत मिलती है। भगवान राम के आशीर्वाद साथ साथ हनुमान जी की भी कृपा बनी रहती है। हमने यहाँ पर हर परिस्थितियों के लिए राम पर श्लोक दिए है। जिसके रोजाना पढ़न से आपके जीवन के सारे कष्ट दूर होंगे।

सौभाग्य और सुख प्राप्ति मंत्र:
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श्री राम जय राम जय जय राम। श्री रामचन्द्राय नमः।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।

गरीबी/दरिद्रता निवारण मंत्र:
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अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद धन दारिद दवारि के।।

सफलता के लिए मंत्र:
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” ॐ राम ॐ राम ॐ राम ह्रीं राम ह्रीं राम श्रीं राम श्रीं राम – क्लीं राम क्लीं राम। फ़ट् राम फ़ट् रामाय नमः ।

धन-प्राप्ति मंत्र:
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जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।

अकाल मृत्यु निवारण मंत्र:
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|| नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ||

|| लोचन निजपद जंत्रित जाहि प्राण केहि बाट ||

संतान प्राप्ति मंत्र:
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प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।

श्री राम तारक मंत्र:
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ॐ जानकीकांत तारक रां रामाय नमः।।

तारक मंत्र
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श्री राम, जय राम, जय जय राम।।

श्री राम संस्कृत श्लोक 
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जे सकाम नर सुनहि जे गावहीं।
सुख सम्पति नाना बिधि पावहिं।।

कवन सो काज कठिन जग माहीं। 
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
राम काज लगि तव अवतारा। 
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा।।

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।।

श्री राम मूल मंत्र 
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ॐ ह्रां ह्रीं रां रामाय नम:।।

श्री राम सरल श्लोक 
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श्री राम शरणं मम्।

श्रीं राम श्रीं राम।

ॐ राम ॐ राम ॐ राम।

क्लीं राम क्लीं राम।

रामाय नमः।

ॐ रामाय हुँ फ़ट् स्वाहा।

ॐ श्री रामचन्द्राय नमः।

ह्रीं राम ह्रीं राम।

श्री राम जय राम जय जय राम।

श्री रामचन्द्राय नमः।

राम राम राम राम रामाय राम।
(संकलित पोस्ट)

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