मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

पौराणिक_बगलामुखी_स्तोत्र

#पौराणिक_बगलामुखी_स्तोत्र

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नमो देवि बगले!
चिदानंद रूपे, नमस्ते जगद्वश-करे-सौम्य रूपे।
नमस्ते रिपु ध्वंसकारी त्रिमूर्ति, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।
सदा पीत वस्त्राढ्य पीत स्वरूपे, रिपु मारणार्थे गदायुक्त रूपे।
सदेषत् सहासे सदानंद मूर्ते, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।
त्वमेवासि मातेश्वरी त्वं सखे त्वं, त्वमेवासि सर्वेश्वरी तारिणी त्वं।
त्वमेवासि शक्तिर्बलं साधकानाम, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।
रणे, तस्करे घोर दावाग्नि पुष्टे, विपत सागरे दुष्ट रोगाग्नि प्लुष्टे।।
त्वमेका मतिर्यस्य भक्तेषु चित्ता, सषट कर्मणानां भवेत्याशु दक्षः।।
#विधि
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माता के चित्र पे तिलक लगाए और गुड़, चने और हल्दी से बना नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करके धूप, दीप जलाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें।  नित्य धूप, दीप आदि जलाकर माता का दर्शन करें। यह सारी क्रिया निष्ठापूर्वक करें, कामनाओं की पूर्ति होगी। यदि भीषण मृत्युतुल्य शत्रु बाधा हो, तो प्रतिदिन पीले वस्त्र के आसन पर बैठकर निम्नलिखित पौराणिक स्तोत्र का एक पाठ निष्ठापूर्वक करे,दरवाजे पर आया शत्रु भी नतमस्तक होकर वापस चला जाएगा।
जिस घर में इस स्तोत्र का नित्य पाठ होता है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी प्रकार की विपत्तिया हावी नहीं हो सकती। न उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो सकती है।
लेखन-सम्पादन-संकलन~राहुलनाथ
#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।
बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।
🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

☯️राहुलनाथ™ 🖋️।....
ज्योतिषाचार्य,भिलाई 

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

रिश्ते_मेरे_रिश्ते

#रिश्ते_मेरे_रिश्ते
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जिस तरह आँखों के सामने एकदम सामने,करीब नाक के पास,रख कर पत्र नही पढा जा सकता।हमे उस पत्र को आंखों से उचित दूरी तक ले जाना पड़ता है,रखना पड़ता है। ठीक इसी तरह हमारे रिश्ते भी होते है रिश्तों को भी तभी समझा जा सकता है,जब रिश्तों को उचित दूरी से देखा जाए।पत्र को जिस प्रकार पढ़कर,समझा जा सकता है। उसी प्रकार,रिश्तों को भी समझा जा सकता है पढ़कर।किन्तु हम ऐसा नही करते,हम किसी एक रिश्ते के भीतर प्रवेश कर जाते है,उसे अपना सर्वस्व लुटा देते है जिससे अन्य रिश्ते बाधित होते है और वे अपने आपको एकांकी समझते है।हमे आवश्यकता होती है कि, इस समय सब से एक उचित दूरी बना कर,सबके हृदय को समझने की,और सही निर्णय लेने की। 🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©७.०२.२०२२
☯️राहुलनाथ™ भिलाई 🖋️

मुण्डमाला_तन्त्रोक्त_महाविद्या_स्तोत्रम्

#मुण्डमाला_तन्त्रोक्त_महाविद्या_स्तोत्रम्
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ऊँ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।

नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि।।

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।

प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।

जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।

करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।

हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।

गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकारभूषिताम्।।

हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।

सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।।

मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।

प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम्।

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।

नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम्।।   

श्यामांगी श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम्।

प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम्।।

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।

आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम्।।

श्री दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम्।

प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।

त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम्।

शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।

सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम्।

नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम्।।

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम्।

सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम्।।

विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।

महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।

प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।

रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजमर्दिनीम्।।

भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिह्वां सुरेश्वरीम्।

चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।।

त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।

अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम्।।

कमलां छिन्नभालांच मातंगी सुरसुन्दरीम्।

षोडशीं विजयां भीमां धूमांच वगलामुखीम्।।

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम्।

प्रणमामि जगत्तारां सारांच मन्त्रसिद्धये।।

इत्येवंच वरारोहे, स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।

पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि।।

।।इति श्रीमुण्डमाला तन्त्रोक्त महाविद्या स्तोत्रम् समाप्तं।।
#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।
बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।
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🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

☯️राहुलनाथ™ भिलाई

 

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

#प्रायोजन_पत्र(मंत्र,नाम एवं शब्द द्वारा पत्र लेखन विधि)

#प्रायोजन_पत्र(मंत्र,नाम एवं शब्द द्वारा पत्र लेखन विधि)
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प्रयोग काल में शब्द, नाम अथवा मंत्रादि आपको अपने प्रयोजन हेतु जिस पत्र पर लिखना है, उसका विवरण निम्न प्रकार से है :
प्रयोजन पत्र
सुख-समृद्धि केले के पत्र पर
धन-धान्य भोजपत्र पर
मान-सम्मान पीपल पत्र पर
सर्वकामना सिद्धि अनार के पत्र पर
लक्ष्मी कृपा बेल के पत्र पर
मोक्ष तुलसी पत्र
धन प्राप्ति कागज पर
संतान-गृहस्त सुख भोज पत्र पर

वैसे तो अष्ट गंध की स्याही सर्वकामना हेतु किए जा रहे मंत्र के अनुसार निम्न कार्य हेतु किए जा रहे मंत्र सिद्धि के लिए उपयुक्त है तथापि महानिर्वाण तंत्र के अनुसार निम्न कार्य हेतु अलग-अलग स्याही भी चुन सकते है :
प्रयोजन स्याही
सर्व कार्य सिद्धि केसर तथा चंदन
मोक्ष सफेद चंदन
धनदायक प्रयोग रक्त चंदन
आरोग्य गोरोचन तथा गोदुग्ध
संतान सुख चंदन तथा कस्तूरी
शुभ कार्य गोरोचन, चंदन, पंच गंध
(सफेद तथा लाल चंदन, अगर तगर तथा केसर)
Sanklit🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

।। #राहुलनाथ ।।™(ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)
शिवशक्ति ज्योतिष वास्तु एवं अनुष्ठान,भिलाई,३६गढ़,भारत 📞+ 917999870013,+919827374074(w)
#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञान . शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।
बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।

तन्त्रोक्त_माला_संस्कार_प्राणप्रतिष्ठा_विधि

#तन्त्रोक्त_माला_संस्कार_प्राणप्रतिष्ठा_विधि
मंत्र जप -अनुष्ठान-साधना-पूजा में जप माला की आवश्यकता होती है |बहुत कम ही ऐसी साधनाये है जिसमेमाला का जरूरत न हो |माला बाजार से सीधे खरीदकर जप नहीं किया जा सकता ,इस तरह की माला पर जप बहुत प्रभावी नहीं होता ,इसलिये माला प्राण-प्रतिष्ठा विधि-विधान अत्यंत आवश्यक है| सभी की ऐसी इच्छा रहती है की मेरे पास दुर्लभ माला रहे जिससे मेरी हरकामना पूर्ण हो,, परंतु आजकल मार्केट मे ऐसा माला नहीं मिलता,|इसके लिए एक निश्चित प्रक्रिया के अनुसार माल की प्राण प्रतिष्ठा और उसमे चैतन्यता की आवश्यकता होती है | अगर पत्थर मे जान डालकर उनका पूजन हो सकता है तो फिर माला का हर मनका भी जीवित किया जा सकता है | इसके लिए तंत्रानुसार निम्न प्रक्रिया अपनाई जा सकती है ,यद्यपि भिन्न लोग भिन्न प्रक्रिया भी अपना सकते है ,साथ ही कई प्रक्रियाएं इस सम्बन्ध में उपयोग में आती है |
सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए| अब सर्व प्रथम आचमन – पवित्रीकरण करने के बाद गणेश -गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले| …
मुख शोधन करे :
“क्रीं क्रीं क्रीं ॐ ॐ ॐ क्लीं क्लीं क्लीं”
इस मंत्र का १० बार जाप करने से मुख शोधन होगा…
स्व-गुरु पूजन :-
श्रीगुरुनाथ श्री पादुकां पुजयामी । परमगुरु श्री पादुकां पुजयामी । परापरगुरु श्री पादुकां पुजयामी । परमेष्टिगुरुनाथ श्री पादुकां पुजयामी ।
गुरुमंत्र का कम से कम एक माला जाप करे और गुरुजी से सफलता हेतु प्रार्थना करे….
निम्न मंत्र बोलकर गुरुचरनोमे भक्ति-भाव से पुष्प समर्पित कीजिये…
अभीष्ट सिद्धिम मे देही शरनागतवस्तले। भक्त्या समर्पये तुभ्यं गुरुपंक्तिप्रपूजनम॥
तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले ! एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा ! इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे ! अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये ) करे ! गाय से उत्पन्न दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर इन पांच वस्तुओं को मिलाने से पंचगव्य बनता है ! पंचगव्य से माला को स्नान करना है – स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर -व्यंजन का उच्चारण करे ! – ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !! यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धोले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा !इसके बाद माला को जल से धो ले –
ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः
भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!
अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन- कुमकुम आदि का तिलक करे –
ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कल विकरणाय नमो बलविकरणाय नमः !
बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!
अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले –
ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:
अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र का १०८ बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे –
ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!
अब साधक माला की प्राण – प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे –
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः !!
अब माला को बाएं हाथ में लेकर दायें हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा !
ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ !!
२४ बार गायत्री मंत्र बोलकर माला पर जल चढ़ाये, जिससे माला का शुद्धिकरण हो जाये और मंत्र जाप मे किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगे. .माला का गन्ध अक्षत और पुष्प से पूजन करके प्रार्थना करे…
ॐ माले माले महामाले, सर्वशक्तिस्वरूपिणी । चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्तस्तस्मात्वं सिद्धिदा भव॥
माला को चैतन्य करने के लिये चेतना बीज मंत्रोसे माला के हर मणि को कुंकुम का बिंदी लगाये
चेतना बीज मंत्र :- “क्लीं श्रीं ह्रीं फट”
अब माला का स्तुति करते हुये माला को दाहिने हाथ से ग्रहण करे
ॐ अविघ्नंकुरु माले त्वं जपकाले सदा मम। त्वं माले सर्वमन्त्रानामभीष्टसिद्धिकरी भव ॥
आप जिस प्रकार का माला चाहते है जैसे गुरुमंत्र जाप माला, दशमहाविद्या, महामृत्युंजय,
नवग्रह माला, तो इस के लिये आप संबन्धित देवी/ देवता काआवाहन माला मे करे या इष्ट से प्रार्थना करे के उनके प्रसन्नता प्राप्त करने हेतु “अमुक मंत्र जाप हेतु माला मे अमुक शक्ति की स्थापना हो “और अपने इष्ट का आज्ञा चक्र मे ध्यान करे…
कुल्लुका मंत्र का करमाला (उंगली से) से शिर पर १० बार जाप करे
“क्रीं हुं स्त्रीं ह्रीं फट”
अब माला को हाथ मे लेकर निम्न मंत्र का आवश्यक संख्या मे जाप प्रारम्भ करे
तान्त्रोक्त माला मंत्र :-
ॐ ऐं श्रीं सर्व माला मणि माला सिद्धिप्रदायत्री शक्तिरूपीन्यै श्रीं ऐं नम:
मंत्र जाप के बाद माला को शिर पर रखे और प्रार्थना करे…
माले त्वं सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा भव ।
शुभं कुरुष्व मे देवी यशोवीर्य ददस्व मे ॥
माला को शिर से उतारकर पुष्प समर्पित कर दे॰ सदगुरुजी भगवान को सर्व विधि-विधान हाथ मे जल लेकर जल के रूप मे समर्पित कर दीजिये और क्षमा प्रार्थना भी करनी है|
अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे ! इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है ! नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे –
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनी साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा ! ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !
जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए ! गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है !
यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो सामान्य साधक उपयोग में ले सकते हैं |इस सम्बन्ध में योग्य जानकार से परामर्श लें और मंत्रादी की शुद्धि जांच लें …
Sankalit 🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻

।। #राहुलनाथ ।।™(ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)
शिवशक्ति ज्योतिष वास्तु एवं अनुष्ठान,भिलाई,३६गढ़,भारत 📞+ 917999870013,+919827374074(w)
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यक्षिणी_नायिका_कवच

#यक्षिणी_नायिका_कवच
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यक्षिणी (या यक्षी ; पालि: यक्खिनी या यक्खी ) हिंदू, बौद्ध और जैन धार्मिक पुराणों में वर्णित एक वर्ग है जो देवों (देवताओं), असुरों (राक्षसों), और गन्धर्वों या अप्सराओं से अलग हैं। यक्षिणी और यक्ष, भारत के सदियों पुराने पवित्र पेड़ों से जुड़े कई अपसामान्य प्राणियों में से एक हैं।
अच्छी तरह से व्यवहार करने वाली और सौम्य यक्षिणियों की पूजा भी की जाती है।यक्षिणी ये कोई प्रेत या भूतिनी नही है, यह अप्सरा तुल्य सोंदर्य की देवी है, जो साधक के सभी मनोरथों को पूर्ण करने के लिए सदेव आतुर रहती है, यक्षिणी कवच वशीकरण के लिए विशेष कृपा प्रदान करता है,यदि आपको इनकी कृपा चाहिए तो इसे अवश्य ही, यक्षिणी कवच का पाठ करना चाहियें, तंत्र शास्त्र अनुसार इस कवच को ग्रहण करने से निश्चित ही सिद्धि मिलती है, इसमें कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं रह जाती है।।।
कुछ प्राचीन ग्रंथ है और कुछ अर्वाचीन ग्रंथ भी हैं। इन सभी ग्रंथों में अनेक प्रकार की इतर योनियों का वर्णन है। जिसमें यक्षिणी नाम की इतर योनि और उसकी साधना का रहस्य बताया गया है। 
यक्षिणी एक योनि होती है, देवी देवताओं और योगिनी के बाद ये सबसे शक्तिशाली योनि मानी गई है, यक्ष और यक्षिणी की कहानियां सिर्फ हिन्दू धर्म मे ही नहीं बल्कि  दुनिया के 80% धर्मों मे मिलती है, यक्षिणी की उत्पत्ति ऐसे बताये गई है, कोई धार्मिक महिला या पुरुष जिसका मन साफ़ हो, जो अच्छे कर्मों को लेकर यदि असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो वो भूत पिशाच आदि निकृष्ट योनि को प्राप्त नहीं होता बल्कि अर्ध देव योनि  यक्ष और यक्षिणी को प्राप्त होता है, और किसी के बुलाने पर उसकी सम्पत्ति या उसकी रक्षा करते है.यक्षिणी को मंत्र साधना द्वारा जाग्रत कर बुलाया जाता है ,यह कई प्रकार की इच्छाओ की पूर्ति करती हैं , यक्षिणी कई प्रकार की होती है और उन का महत्व भी भिन्न भिन्न प्रकार का होता है।
तंत्र ग्रंथों में यक्षिणी तथा यक्ष के साधना के विस्तृत विवरण मिलते हैं।

#प्रमुख_यक्षिणियां_है –
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी,2. मनोहारिणी यक्षिणी,3. कनकावती यक्षिणी,
4. कामेश्वरी यक्षिणी,5. रतिप्रिया यक्षिणी,6. पद्मिनी यक्षिणी,
7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।
#अन्य_यक्षिणियां
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यक्षिणी कई प्रकार की होती है और उन का महत्व भी भिन्न भिन्न प्रकार का होता है।
1- चण्डवेगा यक्षिणी 2- विशाला यक्षिणी 3- लक्ष्मी यक्षिणी 
4- काल कर्णिका यक्षिणी 5- शोभना यक्षिणी 6- दिव्य यक्षिणी 7- वटवासिनी यक्षिणी 8- हंसी यक्षिणी 9- नटी यक्षिणी 
10- विभ्र्मा यक्षिणी 11- रतिप्रिया यक्षिणी 12- सुरसुन्दरी यक्षिणी 13- अनुरागिणी यक्षिणी 14- जलवासिनी यक्षिणी 
15- महाभया यक्षिणी 16- चन्द्रिका यक्षिणी 17- रक्तकम्बला यक्षिणी 18 – विधुजिव्हा यक्षिणी 19- कर्णपिशाचिनी यक्षिणी
20- चामुंडा यक्षिणी21- चिंचीपिशाची यक्षिणी 22- विचित्रा यक्षिणी 
23- पघिनी यक्षिणी
यक्षिणियां अत्यंत कम समय में ही भौतिक व आर्थिक रूप से अपेक्षित परिणाम देकर भौतिक सुख संसाधनों की सहजता प्रदान करती हैं , साथ ही साधक द्वारा उनकी शक्तियों का सही प्रयोग किये जाने पर आध्यात्म के मार्ग में भी सहायक होती हैं !प्रत्येक यक्षिणी के अलग अलग मंत्र होते हैं ओर अलग मंत्र विधियों द्वारा बुलाया जाता है।संकलित

#यक्षिणी_मंत्र_साधना
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यक्षिणीयों के नाम एवं मंत्र
1- विद्या यक्षिणी –ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।
2- कुबेर यक्षिणी –ॐ कुबेर यक्षिण्यै धनधान्यस्वामिन्यै धन – धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।
2- जनरंजिनी यक्षिणी –ॐ क्लीं जनरंजिनी स्वाहा ।
3- चंद्रिका यक्षिणी –ॐ ह्रीं चंद्रिके हंसः क्लीं स्वाहा ।
4- घंटाकर्णी यक्षिणी –ॐ पुरं क्षोभय भगवति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा ।
5- शंखिनी यक्षिणी –ॐ शंखधारिणी शंखाभरणे ह्रां ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा ।
6- कालकर्णी यक्षिणी –ॐ क्लौं कालकर्णिके ठः ठः स्वाहा ।
7- विशाला यक्षिणी –ॐ ऐं विशाले ह्रां ह्रीं क्लीं स्वाहा ।
8- मदना यक्षिणी –ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगं देहि देहि श्रीः स्वाहा ।
9- श्मशानी यक्षिणी –ॐ हूं ह्रीं स्फूं स्मशानवासिनि श्मशाने स्वाहा ।
10- महामाया यक्षिणी –ॐ ह्रीं महामाये हुं फट् स्वाहा ।
11 भिक्षिणी यक्षिणी –ॐ ऐं महानादे भीक्षिणी ह्रां ह्रीं स्वाहा ।
12- माहेन्द्री यक्षिणी –ॐ ऐं क्लीं ऐन्द्रि माहेन्द्रि कुलुकुलु चुलुचुलु हंसः स्वाहा ।
13- विकला यक्षिणी –ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लैं स्वाहा ।
14- कपालिनी यक्षिणी –ॐ ऐं कपालिनी ह्रां ह्रीं क्लीं क्लैं क्लौं हससकल ह्रीं फट् स्वाहा ।
15- सुलोचना यक्षिणी –ॐ क्लीं सुलोचने देवि स्वाहा ।
16- पदमिनी यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छ पदमिनि वल्लभे स्वाहा ।
17- कामेश्वरी यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।
18 – मानिनी यक्षिणी –ॐ ऐं मानिनि ह्रीं एहि एहि सुंदरि हस हसमिह संगमिह स्वाहा ।
19- शतपत्रिका यक्षिणी –ॐ ह्रां शतपत्रिके ह्रां ह्रीं श्रीं स्वाहा ।
20- मदनमेखला यक्षिणी –ॐ क्रों मदनमेखले नमः स्वाहा ।
21- प्रमदा यक्षिणी –ॐ ह्रीं प्रमदे स्वाहा ।
22- विलासिनी यक्षिणी –ॐ विरुपाक्षविलासिनी आगच्छागच्छ ह्रीं प्रिया मे भव क्लैं स्वाहा ।
23- मनोहरा यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहरे स्वाहा ।
24- अनुरागिणी यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छानुरागिणी मैथुनप्रिये स्वाहा ।
25- चंद्रद्रवा यक्षिणी –ॐ ह्रीं नमश्चंद्रद्रवे कर्णाकर्णकारणे स्वाहा ।
26- विभ्रमा यक्षिणी –ॐ ह्रीं विभ्रमरुपे विभ्रमं कुरु कुरु एहि एहि भगवति स्वाहा ।
27 वट यक्षिणी –ॐ एहि एहि यक्षि यक्षि महायक्षि वटवृक्ष निवासिनी शीघ्रं मे सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
28- सुरसुंदरी यक्षिणी –ॐ आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा ।
29- कनकावती यक्षिणी –ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।

#यक्षिणीनायिका_कवचम्।।
।। श्री उन्मत्त-भैरव  ।।

श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं ।
यक्षिणी-नायिकानां तु,संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।

हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभ, संक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,
यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो –

ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं ।
यक्षिणि स्वयमायाति,कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।

हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय
ही सिद्धि मिलती है ।सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो,यक्षिणी-वशमानयेत् ।।

हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ है, केवल डामर-तन्त्रों में
प्रकाशित किया गया है । इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश मेंहोती है ।

#विनियोग :-
ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः,
श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

#ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
श्री अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदि,
साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे
विनियोगाय नमः सर्वांगे।

#मूलपाठ ।।

शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका ।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला ।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना ।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम ।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।

भावार्थ:-
मेरे सिर की रक्षा यक्षिणि, ललाट (मस्तक) की यक्ष-कन्या,
मुख की श्री धनदा और कानों की रक्षा कुल-नायिका करें ।
आँखों की रक्षा वरदा, नासिका की भक्त-वत्सला करे ।
धन देनेवाली श्रीमहेश्वरी पिंगला केशों के आगे के भाग की रक्षा करे ।
कन्धों की रक्षा किलालपा, गले की कमलानना करें ।
दोनों भुजाओं की रक्षा किरातिनी और जटेश्वरी करें ।
विकृतास्या और महा-वज्र-प्रिया सदा मेरी रक्षा करें ।
अस्त्र-हस्ता सदा पीठ और उदर (पेट) की रक्षा करें ।

भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा ।
अलंकारान्विता पातु, मे नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना ।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं ।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके ।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका ।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी ।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका ।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।

भावार्थ:-
हृदय की रक्षा सदा भयानक स्वरुपवाली माकरी देवी तथा
नितम्ब-स्थल की रक्षा अलंकारों से सजी हुई दया करें।
गुह्य-देश (गुप्तांग) की रक्षा धार्मिका और दोनों पैरों की रक्षा सुरांगना करें।
सूने घर (या ऐसा कोई भी स्थान, जहाँ कोई दूसरा आदमी न हो) में मन्त्र-माता-स्वरुपिणी (जो सभी मन्त्रों की माता-मातृका के स्वरुप वाली है) सदा मेरी रक्षा करें।मेरे सारे शरीर की रक्षा निष्कलंका अम्बुवती करें।
अपने बीज (मन्त्र) को प्रकट करने वाली धनदा प्रान्तर (लम्बे और सूनसान मार्ग, जन-शून्य या विरान सड़क, निर्जन भू-खण्ड) में रक्षा करें।
लक्ष्मी-बीज (श्रीं) के स्वरुप वाली खड्ग-हस्ता श्मशआन में और शून्य भवन (खण्डहर आदि) तथा नदी के किनारे महा-यक्षेश-कन्या मेरी रक्षा करें।
वरदा मेरी रक्षा करें। सर्वांग की रक्षा मोहिनी करें।महान संकट के समय, युद्ध में और शत्रुओं के बीच में महा-देव की सेविका क्रोध-रुपा सदा मेरी रक्षा करें।
सभी जगह सदैव किल-दायिका भवानी मेरी रक्षा करें।

इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात् ।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले ।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः ।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा ।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे ।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः ।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।

भावार्थ:-
हे देवी ! यह कवच महा-यक्षिणी की प्रीति देनेवाला है।
इसके स्मरण मात्र से साधक शीघ्र ही राजा के समान हो जाता है।
कवच का पाठ-कर्त्ता पाँच हजार वर्षों तक भूमि पर जीवित रहता है,
और अवश्य ही वेदों तथा अन्य सभी शास्त्रों का ज्ञाता हो जाता है।
अरण्य (वन, जंगल) में इस महा-कवच का पाठ करने से सिद्धि मिलती है।
कुल-विद्या यक्षिणी स्वयं आकर अणिमा, लघिमा, प्राप्ति आदि सभी सिद्धियाँ और सुख देती है।कवच (लिखकर) धारण करके तथा पाठ करके रात्रि में निर्जन वन के भीतर बैठकर (अभीष्ट) यक्षिणि के मन्त्र का १ लाख जप करने से इष्ट-सिद्धि होती है।इस महा-कवच का पाठ करने से वह देवी साधक की भार्या (पत्नी) हो जाती है।इस कवच को ग्रहण करने से सिद्धि मिलती है इसमें कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं है ।

।।   #इति_वृहद_भूत_डामरे_महा_तन्त्रे।।
।।. #श्रीमदुन्मत्त_भैरवी_भैरव_सम्वादे_यक्षिणीनायिका_कवचम्।।
🚩जै श्री महाकाल🚩आदेश आदेश नमो नमः
।। #राहुलनाथ ।।™
(ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)शिवशक्ति ज्योतिष वास्तु एवं अनुष्ठान,भिलाई,३६गढ़
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